दियना के अंजोर (छत्तीसगढ़ी के पहली उपन्यास) शिवशंकर शुक्ल

सर्वाधिकार – लेखकाधीन
आवरण – रविशंकर शर्मा
प्रथम संस्करण – 1964
द्वितीय संस्करण – 2007
मूल्य – 100 रु.
प्रकाशक
वैभव प्रकाशन
सागर प्रिंटर्स के पास, अमीनपारा चौक,
पुरानी बस्ती, रायपुर (छत्तीसगढ़)
दूरभाष – (0771) 2262338, मो. 94253-58748
DIYNA KE ANJOR
BY : SHIVSHANKAR SHUKLA

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शुभकामना – पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

वर्तमान युग सचमुच छत्तीसगढ़ के लिए भी नवजागरण काल हो गया है, छत्तीसगढ़ में नव-प्रतिभा का उन्मेष देख कर मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। साहित्य के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ के तरुण साहित्यकार अपनी रचना-शक्ति का अच्छा परिचय दे रहे हैं। कुछ समय से छत्तीसगढ़ी भाषा को भी समुन्नत करने का स्तुत्य प्रयास हो रहा है। पं. शिवशंकर शुक्ल भी रायपुर के प्रतिभाशाली साहित्यकार हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में पहला उपन्यास लिखा है, उसका नाम है “दियना के अंजोर”। उसकी बड़ी प्रसिद्धि हुई। कितने ही विज्ञों ने उसकी बड़ी प्रशंसा की। “मोंगरा” उनका दूसरा उपन्यास है।
मेरी तो यही कामना है कि उनके द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा की श्रीवृद्धि हो और छत्तीसगढ़ की भी गौरववृद्धि हो

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

अद्वितीय प्रयास- हरि ठाकुर

छत्तीसगढ़ के तरुण कथाकारों में शिवशंकर शुक्ल का महत्वपूर्ण स्थान है। ‘भाभी का मंदिर’ उनका प्रकाशित उपन्यास है। पाठक वर्ग ने उसे पढ़ कर आनन्द प्राप्त किया है।
“दियना के अंजोर” लेखक की दूसरी कृति है। इस उपन्यास की भाषा छत्तीसगढ़ी है। गौरव की बात है कि छत्तीसगढ़ी का यह प्रथम उपन्यास है। लेखक छत्तीसगढ़ी लोक-साहित्य के मर्मज्ञ हैं। छत्तीसगढ़ी लोक-कथाओं का संकलन भी शीघ्र प्रकाश में आ रहा है।
छत्तीसगढ़ी के प्रथम उपन्यासकार के रूप में लेखक का यह अद्वितीय प्रयास सर्वथा प्रशंसनीय है

हरि ठाकुर
भूतपूर्व अध्यक्ष
छत्तीसगढ़ व. हिन्दी साहित्य सम्मेलन

अध्याय-1

आज मोला अपन शिकार खेले के चाल बर अड़बड़ रिस लागत रिहिस। शिकार खोजे बर मोला सुरता नई ये, कौन दोखहा के मुँह ला देख के निकरे रहेंव। एखर ले आगू में हर अऊ कतकोन घांव शिकार खेले बर रूप-नगर के जंगल म आय रहेंव, फेर आज पहिली घांव हैरना ला कुदावत-कुदावत रद्दा ला भुला गेंव। दिन भर रद्दा ला खोजत रहेंव तबले रद्दा नईज पायेंव। तब हार खाके एक ठन रुख के छैंहा म बैठ गेंव।
जस-तस सांझ होत जाय मोर धुकधुकी बाढ़ते जाय। में डगर खोजत-खोजत हार खा गेंव। रथिया के अंधियार बाढ़त गईस, ओखर संगेसंग मोर मन म घलोक अंधियार लागे लगीस। हे भगवान। अब जौन होही तौन होही देखे जाही कहिके रुख ऊपर चढ़ गेंव। दिन भर के चरचरावत घाम के मारे मुरुकान करिया गेय रिहिस। देह तीप गेय रिहिस, मोला लागत रिहिस के जर चढ़ा लेय हावय। रुख ऊपर मोला पियास लागे लगीस फेर रुखा खाले उतरई घलोक हर एक ठिक डर के बुता रिहिस, अऊ पियास के मारे जी अबक-तबक होत रहीस। में विचारेंव के मरना तो हई हे फेर पानी के पियास में मरई मोर असन जुन्ना शिकारी बर लाज के गोठ आय। मेंहर पानी केसोर लगाय लगेंव।
अइसने बखत में सुर्रा चलीस। सुर्रा में रुख के गिरे पान पतई ह एती ले वोती उड़ाय लागीस। उखर उड़ावब के सोर हर अड़बड़ जोर से होईस जेमा मेंहर चमक गेंव। अऊ उही मेर के बड़े जान पथरा के ओधा म लुका गेंव। पान के खुट-खुट खार हे भगवान। आज रात भर मोला बचा ले। उहुं आज भगवान मोर नई सुनय।
पियास म जीव तलफला गे रीहिस। जीव के मोहला छोड़ के आघू कोती चलेंव। हुदुक ले हांसे के अऊ फुसुर-फुसुर गोठीयाय के सोर मिलीस। में चिचियांव। मोर हांथ के बंदूक हर नई जानव केती गिरीस अउ महुं भड़ाक ले भुइयां म गिर पड़ेंव। मोला सुरता नई रहीस के कब ले बिहिनिया होगे। मेंह उठेंव, ऐती ओती चकचकाय असन देखेंव। ऊहां जौन कुचु देखेंव उही हर मोर बर भगवान के देनगी बनगे।
ओहर आय एक ठिन मंदिर। ओला देखे ले लगिस के ओहर चंदा के अंजोर आय। मंदिर ला देखे ले लागिस के ओहर हाले के बने आय। मोर मन म मंदिर ला देख के आनंद होइस के अबउहां के पुजेरी हर रद्दा ला जरूर बता देही अऊ मोर मदत हो जाही।
मेहर ठाड़ होयेंव अऊ मंदिर के सिंग दुवारी मेर गेंव। जिहां सादा पथरा म करिया अक्षर म सुघर बनाय चरकोनिया पचरा देखेंव। लकठा म जाके पढ़ेंव। ओमा लिखाय रहिस “भौजी के मंदिर”। में कांही नई समझे सकेंव। वचारेंव के मंदिर के गोठ पुजेरी मेर ले जान सकहूं।
मंदिर के ओर छोर ला खोज डारेंव फेर पुजेरी के दरसन नई होईस त हार खाके मूर्ति पधराय रीहिस तौन ठोर म गयेंव। उहों कोनो पुजेरी नहीं रीहिस। मोला मंदिर ल सफ्फा सुथरा देख के अकचकासी लागीस के उहां कोनो मनसे नई राहंय अऊ एहर अतेक सफा कइसे हावय। मन म विचारेंव के जंगल के मंद म हावय तौन पाय के कोनो पुजेरी नइये।
मोर मन के बात मने म रीहिस के मोरधियान हर ओमेर राखे दिया म गईस। मोला अपन आंखी ऊपर विसवास नई होइस, फेर अविसवास करइ घलोक हर नई फबत रहिस काबर के दिया आघू में माढ़े रहिस हे अऊ कोनो अभीच्चे बुताय हावय तैसना धिंगया निकरत रीहिस। में हर ऐसना अचरज के बुता ला जादा बेर नई देखे सकेंव अऊ मंदिर के बाहिर निकल आयेंव।
बाहिर आये ले मोला रथिया के किस्सा धियान आईस वो हांसना, फुसुर-फुसुर गोठियाना अऊ फेर ये दिया। मोर रुंवा ठाड़ होगे अऊ पल्ला छोड़ा के भागे लागेंव। थोरकेच दुरिया भागे पाय रहेंव के पीछू कोती ले कोनो चिचियाइस – “ठाड़ हो तो बाबू” – “ए बाबू”। ओखर चिचियाइस ल सुनते मोला भरोसा होगे के कोनो तो मोर पीछू पर गेय हावय। मेंहर उहां के अटपट किस्सा के मारे पहिलीच ले डरा गेय रहेंव फेर पीछू कोती के हांक परइ ल सुन के रेहे-सहे तुध ला बिसरा डारेंव। मोला चक्कर असन आय लागिस अऊ फेर का होइस तेखर मोला कुछु सुध नईये।
मोर आंखी उघरिस तब मेंहर देखेंव मोला घेरे दु चार-जदिन गवंइहा मन बइठे हांवय। लकठा में बेठे मंडल ला पूछेंव – मंडल मेंहर केती हांवव ? तुम कोन आव अऊ मेंहर इहां कइसे आगेंव। वो मंडल ह किहिस – बैया तोला काल ओ कटकटावट जंगल कोती जावत देख के हमन जान डारेन के तेंहर कोनो शिकारी आस। फेर तेंहर जानत नई अस के आज ले कोनो ए जंगल में जाके जियतनइ लहुटे पांय। इहीला गुन के मेंहर तोला हांका पारेंव। फेर तेंहर ठाड़ होय के छांड़ अड़ड़ जोर से भागे लागेय। मेंहर भागत देखेंव तब ठाड़ होगेंव। थोकन भागेव अऊ गिर गेव। मोरह तुंहर तीर के जात ले तुमन सुध-बुध ला गंवा डारे रहेव। तहां ले मेंहर तुमनला इहां ले आनेंव। मेंहर इही गांव कुवरापुर के गौटियां आंव।
अपन चिन्हारी बता लिस तहां ले गौटियां हर मोर चिन्ह पहिचान पूछीस। महूं हर अपन चिन्हारी ल बतायेंव। मेंहर हक्का-बक्का रहि गेंव ओखर बताय ऊपर के मेंहर सहर ले पन्दरा कोस धुरिया आ गेय रहेंव। का मेंहर रथिया भर रेंगतेच रहेंव ?
गौटियां हर थोकन रहि के सहर पहुंचा देहूं किहिस अऊ बाहिर चल देइस। रथिया लथकेंच रहेंव, मोला नींद आय लागीस अऊ थोकन बेरा में सुत गेंव। थोरके बेरा में मोर नींद झकना के उचट गे। मोला सपना घलौक ओ पथरा में लिखाय “भौजी के मंदिर” हर जगा देइस। मेंहर चमक गेंव। मोला रथिया के जम्मो चीज हर जस के तस दिखे लागीस। वोहर हांसीस अऊ फुसफुसाइस “भौजी के मंदिर” अइसे त मेंहर जम्मो गोठ ला भुला जातेंव। कहि के विचारत रहेंव फेर ओ चरकोनिया सादा पथरा म लिखाय – “भौजी के मंदिर” हर मोर धियान ला रहि-रहि के अपनेच कोती लेग जाय। वो कोन “भौजी के मंदिर” आय। मोला ओहर सच्चा पिरीत के सुते चिन्हा असन लागत रीहिस। का मोला ओखर बिसे में कुचु जाने बर मिलही। फेर काखर मेर, हहो ठउका आय, गौटियां, मेंहर रेंग परेंव चौपार कोती।
मोला आवत देख के गौटियां हर ठाड़ होगे। अपन सौंजिया ला माचा लाने बर कीहिस। मेंहर मचिया ऊपर बइठ गयेंव। थोकन बेरा ले चुप्पे चुप बइठे रहेंव, फेर मोला त मंदिर के बिसे में जाने के सोंच राहय। मेंहर गौटियां मेर पूछेंव – कस गा बबा! एक बात तोर मेर पूछतेंव, का तेंहर सच बात ला बताय सकबे ? ओहर मोर कोती अकचकाय असन मुंहू ला बना लिस अऊ देखीस अऊ केहिस – बाबू जानत होहूं तब काबर नई बताहंव, का बात आय गोठिया न गा। मेंहर केहेंव – बबा ओ मंदिर…।
मोर गोठ नई पूरन पाइस अऊ ओहर कहि डारिस। उही दुलरवा के “भौजी के मंदिर” जौन हर जंगल के मंद मा इहां ले एक धाप म आज ले अम्मर होके ठाड़े हावय। मेंहर ओ मंदिर के आदि अंत सबौ ल जानत हावंव। इही आंखी में ओ हांसत खेलत खात घर ला बरबाद होवत देखे हावंव। ये मन हर ओ घर के बाहिर भीतरी सबो के गोठ ला अपन मेर सकेल राखे हावय जेमा के भुला झन जाय। दुलरवा अऊ डेरहा दुनों इही गांव म जनम लेय रिहिन। इहें फरीन अऊ इहें मेटागे। दुलरवा हर मोला अड़बड़ चाहय। ओखर सुरता हर आज ले मन ला रोनहुत कर देथे। ओखर सुर्री आदत (भाउकता) हर ओखर जिंदगी आय। ओहर ओला अपन मरत ले नई छांडिस। ये “भौजी के मंदिर” हर उही करमछड़हा के चिन्हा आय। ओला बखत हर चिन्हीस। तभे तो ओहर ए राच्छसी जनगी ले भगा गे। बबा अतक कहि तो डारिस फेर ओखर टोंटा हर भरभरा गे। आंखी मं आंसू डबडबा गे। ओहर आंसू ल रोके को कोसीस करिस अऊ कहिस, मोला सुरता हावय दुलरवा के जीयत ले का का गोठ होइस। मेंहर अपन के बात ल नई बताय सकत रहेंव झटके जान डारते अइसे लागत राहय तेला अड़बड़ उदिम करके ओला दबखत सबखत कहेंव – बबा, बता न गा दुलरवा कौन आय। बबा हर मोर कोती डबडबाय आंखी म देखीस। खखारखुखुर लीस अऊ केहे बर सुरु करिस…।
आज ले पच्चीस बच्छर आघू ए गांव हर मंदिर तीर ले रिहीस। जउन मेर आज मंदिर हावय तौने मेर एक ठन छोट कन दूमंजिल के घर रहिस। उहें दुलरवा के ददा गोपी बाबू हर राहय। छोट कर परवार रिहिस उन्खर, दू झिन बेटा अऊ एक झिन बेटी। ओमन अपन नानेचकुन परवार म आनंद राहंय।
मामूली खात-पीयत घर के होके घलोक ओहर पन बड़का बेटा डेरहा ला बी.ए. तक ले पढ़ाईस। डेरहा हर लकठा के मंदरसा में मास्टर हो गेय रिहिस। फेर दुलरवा के लैन हर दुसरेच रिहिस।
मोला बने सुरता हावय एक दिन मोला दुलरवा के ददा हर दुलरवा के आठ बरस के सब्बो किस्सा ला बताय रिहिस। दुलरना के जनम दिन में अड़बड़ खुसी मनाए रहीन। काबर के महाराज हर केहे रिहिस हे, अफसर बनही। घर के मनखे मन के आनंद के ठिकाना नई रहिस। डेरहा के जनम दिन म तो चना अऊ गुर बांटे रिहिन, दुलरना के जनम दिन म मिठाई बांटिन।
दुलरवा हर अपन जिंदगानी के 4-5 बच्छर त बड़ आनंद खुसी म काटीस। काबर के ओ समे वोहर ए मतलबा संनसार ला नई बूझए रिहिस। जिहां ले ओला थोर-थोर सनसार के सुध आईस उही दिन ले ओहर सनसार के नान-नान बात मन ला देख थथमथरा जाय। ओला अपन परवार ला छोड़ के भगा जाय के मन हो जाय।
मेंहर उन्खर लाटा फांदा गोठ ला नई समझे सकेंव अउ कहेंव – बाबा मेंहर त अभी ले तुलरवा के मन के गोठ ला नई समझे पायेंव। मोर ऊपर किरपा करके ओला झन लुका के राख। मोला वो लइका के सब्बो गोठ ला बतावव। आगू के किस्सा ला बता। ओहर किहिस, बने काहत हस बाबू महूंहर ओखर गोठ नई लुकावत अंव। तुमला सुना के मोर मन के बोझ हा हरू हो जाही। फेर कहे बर सुरु करीस।
दुलरवा के ददा गोपी बाबू हर दुलरवा ला अबड़ेच मया करय। ओहर काहय के भई दुलरवा मोर छोटे बेटा आय अऊ उही पाय के ओखर ऊपर मोर जादा मया हावय। फेर कहूं दुलरवा के चाल चलन हर बने रहितिस तो मय हर कइसनों मा घलोक अपन भाई मन मेर ले अलग होके गंवई म नई आय बर परतीस। मोला दुलरवा के संसो हावय, नई जानव कब ओखर सुध चढ़ही।
गोपीनाथ के गोठ ला सुनके मोला अबड़ेच दुख लागीस। मेंहर बिचारें लागेंव के दुलरववा म का औगुन हावय जेखर मारे गोपीनाथ बाबू ला अतेक संसो पर गेय हावय। मेंहर दुलरवा ला मका पाके समझाये के बिचारेंव।
दूसर दिन दुलरवा ला बलवायेंव। दुलरा महू ला अडबड़ मयारूक लागय। ओघर मन क ेबिचारब अऊ ओखर मउँह हर भगवान देनगी आय तैसन लागय। ओला देखके कोनों नई केरे सकतिन के ओखर म कांही औगुन होही, कका औगुन हो सकथे। मोर बलावा पाके ओहर आईस अउ कहिस – का बात ए कका। मेंहर कहेंव – दुलरवा गोपी हर आज तोर बिसे में कुछु बताइस हावय, मोला अबड़ेच पीरा होइस रे बाबू दुलरवा। तेंहर अपन बुढ़वा ददा ला काबर दुख देवत हावस रे ? का तोला ओ बुढ़वा ऊपर थोरको सोग नई लागय। दुलरवा रो डरीस। ओ किहिस – तेंहर मोर करमछड़हा जिन्दगानी के कांही गोठ नई जानत अस, न तो धियान गेहे। फेर जब तहुं हर मूंही ला दोस ललगावत हावंवतब मेंहर मोर बीते दिन के किस्सा ला बतावत हावंव। धियान देके सुन अऊ तिहीं हर फैसला कर के काखर दष आय।
दुलरवा हर अड़बड़ परवार के मनखे आय। दुलरवा जे दिन ले इसकूल जाए बर धरीस उही दिन ले ओखर मन हर मनटुटहा हो जाथे। ओहू हर अनफबीत गोठ के हो जाय ले।
दुलरवा हर इस्कूल लरे लउटे अऊ कका के दूकान म जाय तब उहें रोज बिलानागा एक पैसा ओला मिलय। फेर दुलरवा के कका के बेटा मन ला ऊंखर मन मांगे हिसाब म पैसा मिलय। दुलरवा के परवार के सब्बो खर्चा के भार कका जी ऊपर रहय। पहिली गोपीनाथ घलोक हर दुलरवा के खियाल नई करीस। कभू दुलरवा ला कांही जरूरी चीज लागय तब ओखर ददा हर ओला कका मन कोतीदेखा दय। दुलरवा ला अतका में खुसी नई होवय। गाबर गोपी बाबू हर भतीजा मन कोती जादा ध्यान देवय। अऊ ए हिसाब म दुलरवा के कका के बेटा मन ला दुहरी पैसा मिलय अऊ दुलरवा हर उंघनर मुँह देखत राहय। दुलरवा पहिली उंखर अइसना गोठ कोती जादा धियान नई देवय फेर जब उहु हर ए गोठ ला जाने समझे लगीस तब ओखरो मन मा इरसा के आगी धमके लागीस। तेखर फल ए होईस के एक दिन दुलरवा हर गोपी बाबू के खीसा ले चार आना चोरा लिस।
दुलरवा ला लागय जइसे कोनो ओला नई चाहंय। हो सकथे के एहर दुलरवा के नानपन होय। फेर एहर सिरतोन गोठ आय के लैका मन के नानपन के चाल ला बिन जाने समझे ऊंखर संग गलत ढंग ले बेवहार करेले फल हर खराबेच होथे।
दुलरवा के चाल हर रोज के रोज बिगड़तेच गईस। दुलरवा के मारे ऊहू ला जस अपजस के गोठ ला सहे बर परे लागीस। फेर दुलरवा महतारी के दुलरवा आय, अऊ ओहर अपन जीयत ले दुलरवा के बरोबर धियान राखीस।
जउन दुलरवा हर पहिली चार आना चोराय रिहीस तऊने दुलरवा के मन मा अब इरखा उऊ बलदा लेय के बिचार हर दिन-दिन जोर पकरे लागीस। अब ओहर ये करम म अऊ आगू बढ़गे। अब ओहर रुपया चोराय लगीस। दुलरवा हर अब घर वाला मन के बिचार मा भारी चोर होगे। सब्बो इही काहंय के अब एखर जिंदगानी अइसने कटही, एखर जीअई हर नई जीये के बरोबर आय।
मनखे हर कफू कखरो भागल ला पढ़े सकथे ? ओमन का जानत रिहिन के ओखरों दिन फिरही अऊ इही उजबक दुलरवा के सबे झिन मया करहीं। फेर ये बात हर सच आय के कोनों मनखे कतको खथराब होय, कोनो ओला बिचार के मारमार के सोज रद्दा देखाही तब ओ भूलाय मनखे घलोक हर अपने बर बने रद्दा निकालिच लिही। दुलरवा बिगड़िस कइसे- पियार के नइ पाये मा मन ला छोटे करके, नई तो ऊहू हर अपन रद्दा पहिली चले पा जातीस। ओला भुलवैया सब्बो रिहिन फेर रद्दा में लनइया कोनों नई रिहिन। सबो ला इही सन्सो राहय, ये अब का करे जाय। दुलरवा केददा के तब चेत चढ़िस जब बेचा हांथ ले निकल गेय रिहिस। कभू ओहर बिचारय के सायेद नानपन म अपन भरम लमझय अऊ मौका परे ले दुलरवा ला कड़ा ले कड़ा सजा देवय।
एक दिन दुलरवा ला घर ले निकाल दीन। महतारी ला माय लागीस ओहर चोरा के थोर बहुत रुपया ओखर मेर अरवाइस, अऊ कहवाइस के ओहर अपन ममा घर चल देवय।
दुलरवा अपन ममा के घर चल देईस। ओहा उहों जादा दिन नई रहे सकीस। दुलरवा परवार ल छोड़ के दुरिहा चल दीस तब ओखरो मन म अपन परवार के मया हर बाढ़िस अऊ ओहर जादा दिन अपन परवार ले दुरिहा नई रहे सकीस।
दुनिया मं जुग-जुग ले चले आवत अऊ कभू नई बिगड़ैया रिवाज आय के समय निकल जाय ले मनखे मन पछताथें। दुलरवा ला गेय थोरकेच दिन बीते पाय रिहिस, फेर दुलरवा के ददा ला अखरे लागीस। अतेक पान के ओहर खाय पीये बर छोड़ दिस। आखरी म दाई के बलाय ले दुलरवा फेर घर लहुट आइस। दुलरवा के घर म पांव देते कका गुसिया गे। ओहर कहिस के दुलरवा हर अब ए घर म नई रेहे सकय। गोपी बाबू ला अबड़ेच पीरा होइस अऊ ओमन इही गांव म आके, घर बवा के रेहे लगीन।
गोपीनाथ ला संझा बिहिनिया चारों पहर दुलरवा के सुरता लागे रहय, गुनय के का जानी आघू चलके येहर का करही ? फेर भगवान के मरजी, इहीच फिकर म गोपीनाथ हर सये संसार ले रेंग दीस। दुलरवा ला लागीस के ओखर बाप के मरे के कारन ऊही हर आय। ओखर अंतरआतमा हर ओला किहिस। ओहर मनेमन परतिग्या करिस के अब ओहर कभू चोरी नइ करय।

अध्याय – दो

बबा के आंखी डबडबा गेय रिहिस। ओहर खखार के टोंटा ला सफा करिस। में हर त सन्ना गेय रहेंव। मोला दुलरवा के जिंदगानी के एक-एक ठिन गोठ हर आंखी के आघू म दिखे लागीस। बबा हर फेर केहे बर सुरू करिस।
महूं हर पहिली काहंव के दुलरवा हरनई सुधरय। पेर मेंहर बिचारंव तब मोर मन हर इही फैसला मा पहुंचिस के आखिर दुलरवा हर बिगड़िस काबर ? पियार के कमी मां। दुलरवा ला पियार मां नई भलूक मार-मार के सुधारे के कोसीस करे रिहिन हावंय अऊ ओखरे मारे ओहर आजाद होगे रिहिस। कहुं दुलरवा के घर के मन दुलरवा ल मारे के बलदा मा मया करे रहितिन तब दुलरवा नई बिगड़तीस। मोर खियाल मा त दुलरवा के करम मा इही सबो हर बदे रिहिस हगे, नई त छोटे होय ले सब्बो के मया पाय के हक ओला भगवान देय रिहिस हे। फेर ओला सबो नई मिलिस। ओहर इही मया ला पाय बर तरसय। फेर कखरो रोके ले समे के चक्कर ह तो नई रुकय।
थोकन दिन के गय ले दुलरवा के भइया डेरहा के बिहाव होगे। ओखह बिहाव गांव म होईस। दुलरवा हर अपन गवंहीन भौजी ला पहिली देखिस। फेर एक दिन भौजी हा ओला देत मूंड़ ढांक लिस तब दुलरवा के दिदी कमल हर किहिस – दीदी अरे ये हर त तोर देवर आय। तब भौजी हर किहिस – हहो देवर आय, फेर बड़े। इही गोठ ला सुनके दुलरवा ह मोहागे। काबर के ओला कभ्भू कोनों बड़े नई केहे रिहिन। दुलरवा के मन मा मबिली घांव के देखई मा भौजी के ऊपर अबड़ेच मया समागे। भौजी के आए ले दुलरवा के जिंदगानी म एक घांव फेर कातिक आगे। ओला भौजी ला कुड़कावब म अड़बड़ मजा आवय। ओहर उपदरवी रिहिस ना। ओहर जब नहीं तब अपन भौजी ला ‘गवंहीन भौजी’ काहय। ये हर त दुलरवा के बेअकल होय के साखी आय। फेर भौजी ला दुलरवा के इही गोठ ऊपर अबड़ेच रिस लागय। वो हर काहय – मेंहर कवंइहीन नों हंव। कहूं तुंहर हिसाब मा गंवई मं रहेच ले कोनों गवंइहीन हो जाथे त तेंहर बने कहथ हस। फेर मोर हिसाब मा दुम्हर ये सहरइया जिंदगानी ले कतको बने गवंइहा जिंदगानी हर आय। दुलरवा अऊ भोजी म इही गोठ ला लेके गोठ बात हो ाजय। ओ मन एक दूसर ऊपर रिस हो जांय पेर थोरकेच बेरा म एक बने बर लहुर तुहर करे लागय।
भौजी ला आय पंतरा दिन होय रिहिस। ओला लेगे बर ओखर भाई हर आगे। दुलरवा के मन नानुक होगे। ओला पीरा होय लागीस के भौजी हर चल दीही त ओखर हांसी खुसी चल दीही। अब काय करंव ? का कुछु उपाय नई ये अभी भौजी हा अऊ थोक बहुत दिन रुके रतिस। फेर दुलरवा के हुंसियारी हर एक दिन चलिस। काबर के ओहर केहे रिहिस हे के रेल हर एक घंटा लेट हावय, सिरतोन मां गाड़ी हर पन्दरा मिलिट लेट रिहिस। तौन पायके ओ दिन ओ मनला रुके बर परगे। आज सबो झिन हुसियार रिहिन हावंय। दुलरवा हर भजी मेर पहुंचगे फेर उहां भैया रिहिस हावय लहुट आइस। ओखर मन हा त रोतेच रिहिस फेर आंखी घलोक हर ओखर संग देत रिहिस। ओहर सुसकत रिहिस। भौजी हा जाय बर तियार होते रिहिस। भौजी हर टांगा मा गोड़ मढ़ाइस। दुलरवा हर चिचिया जारिस भौजी छूटे के बिचार मा अऊ रोत-रोत ओहर गोड़ मा चटक गे। भौजी हा ओला उठाइस फेर झझक के मारे कांही नई केहे सकीस दुलरवा ला, अऊ दुलरवा घलोक। भौजी चल दिस। दुलरवा के मन मां इही पन्दरा दिन मां अपन भौजी बर एक ठन सुंदर अकले ठौर बन गेय रिहिस।
दुलरवा हर थोक दिन ले अपन मन ला भुलवारत रिहिस। फेर ओखर जीव हा भौजी ला देखे बर उबुक-चुबुक होत रिहिस हावय अऊ तब ओहर बिन बताय भौजी के ममइके धमक दीस। ऊहागं ओहर भौजी के दरसन करिस। छाती जुड़ागे। ऊहां ओला आरो मिलिस के भौजी हर रईपुर जवइया हावय। ओला अड़बड़ पिराइस। ओहर भौजी झन जातिस कहिके भगवान के धियान करेय, फेर भौजी हा चलीच दीस। ओहर हार खाके लहुट आइस। ओला अपन जिंदगानी गरु लागे लागिस। ओहर कुछु करे नई सकय, अऊ ना कांही गुने सकय। सुन्न होके एती ले ओती भटके लागिस दुलरवा। फेर बिहिनिया करे रफे फूटीस ओखर मन मां अऊ ओला रद्दा दीखिस। ओहर अपन भौजी ला चिट्ठी लिखे के बिचारिस। ओहर चिट्ठी भेजीस। फेर जवाब नई आइस। ओहर मने मन मा बिचारय के भौजी अऊ मोर का नता हे ? अऊ हावय तौनो हर दिल के नोहे। ओहर त समाज के बनाय नेम आय तौने पाय के देखावा बने हावय। मोला दगा होय हे। ऐसने दुलरवा के मन मां रंग-रंग के गोठ आवय। का इहू भौजी हर अऊ दूसर भौजी मन असन आय य़ का मेंहर ओखर मन मां ठौर नई बनाय सकंव ? दुलरवा हर ऐखर पीछू घलोक अऊ चिट्ठी लिखीस। फेर जवाब नई पाए सकिस। दुलरवा के मन टूट गे रिहिस। ओला सबो हर देखाय के अऊ चोचला आय तैसे लागय। ओहर भौजी के बेवहार ल नई जाने रिहिस के भोजी हा ओला देवर आय कहिके अऊ नई तो कोनो कांही काहय झन कहिके मया करके गोठियाथे। धोखा गोहे हे मोला, हहो मोला धोखा देय हावय। काबर अइसना करीन ? मेंहर त वैसना मया ला आज ले नइच पाय रेहेंव अऊ मोर चाल पर गेय रिहिस फेर काबर मया ला बढ़ाइन। भौजी हर काबर मोला मया के समुन्दर मा बोरिस अऊ निकाल के फेंक दिस।
आठ महिना के बीते ले भौजी के पठौनी आनीन। भौजी फेर आगे। फेर दुलरवा अब मनटूटहा असन राहय। ओला मया नई करंय अइसना फेर लागे लागिस अऊ फेर अपन उही जुन्ना चाल कोती फिरे लागीस। ओहू हर थोक दिन बर काबर के दुलरवा के ये गुनई हर अर्रा निकलिस के ओला अपन कहवइया कोनों नइये। दुलरवा के मनहा जानय के ओहर अपन भौजी मेर ले मया पाय सकही। ओहर भौजीच ला अपन समझय अऊ ओला ओखर मन मां ठौर बनाना जरूरी हे। दुलरवा हा भौजी के मया ला सबो दिन बर पाय चाहत रिहिस।
दुलरवा अऊ भौजी जंवरिहा रिहिन। फेर माइ लोगन होयके मारे भौजी मा सियानी पना जादा रिहिस अऊ दुलरवा मां छोकरा आदत अब ले बांचे रिहिस। ओहर अभी चौदच बछर के रिहिस फेर ओमा उपदरव करे के आदत अबड़ेच भरे रिहिस। दुलरवा के इही उपदरव चाल के मारे भौजी के मन मां थोरको ठौर नइ रिहिस। काबर के भौजी हा पहिली पंदरा दिन रहि के चल देय रिहिस। फेर अब ओला दुलरवा के सबो चाल के बिसे म पता चलिस। ओहर संझा बिहिनिया दुलरवा के भइया मेंर काहय के मेंहर नई जाने सकत हौं के काबर तमन ये चोर, बदमास ला अपन संग मां राखे हावव। ये दुलरवा हा एको दिन तुमन ला जरूर धोखा दिही। डेरहा ला दुःख लागय। का करही दुलरवा हा ओखर मारे मोला का-का सुनेबर परही। फेर ओहा चुपे रहि जाय। ओला घड़ी-घड़ी हा खटकय के दुलरवा हा त ददा के मया बर सबो दिन लुलुवाइस फेर अब मोर छोड़ आसरा देवइया कोनोच नइये। बने होय के खराब होय अब त चलायच बर परही। भौजी हा दुलरवा ला घिनघिन त समझय फेर ये नई जानय के उही दुलरवा हा ओला कतक उंचहा मया करथे अऊ अपन मन मा बइठार लेय हावय।
दुलरवा के भौजी संग जम्भो मनटुटा होवय तब भौजी हर कहय, के हमरे मारे तैंहर लठिंगरा बने किंजरत हस अऊ हमरे संग लड़थौ। दुलरवा घलोक अपन रिस ला नई थामे सकय अऊ कही डारय – काहय हौ भौजी तुमन त चाहत हो के तुम्हर ऊपर ये बोझ हर परे हावय तेहर तुम्हर ओखी ले दुरिहा जावय। अतका दुलरवा कहि त दय। फेर ओला दुःख होवय के मेंहर काबर भौजी ला अइसना केहेंव। ओहा खुदे बेरा मां भोजी मेर पांव पलौटी करे बर पहुंच जाय। अऊ ओहा मान घलोक जाय।
दुलरवा बर भौजी के सुभाव ला समझना कठिन काम रिहिस। का जानी काबर ओहा दुलरवा ला पर समझय, नान-नान गोठ मा ओहा दुलरवा संग लड़ डारय। कहूं दुलरवा हा बात ऊपर बात कहय तभो भौजी के आंखी के आंसू के मोती असन चमकत बूंद-बूंद गिरे लागय अऊ दुलरवा हा ओला सूजी सूतरी मां गूंथे के कोसीस करय(भौजी ल मनाय बर धरय)। भौजी हा जर भूंजा जाय रिस मां। जब संझा इसकूल ले डेरहा हा आवय तब भौजी हा ओखर मेर दुलरवा के हिंता करय। पेर डेरहा के कान मां जूं हा नई रेंगय। डेरहा के अइसना बेवहार ला देख के भौजी हा उपास करेके परतिग्या करय। “माई लोगन के उपास हा घलोक अतेक ताकत वाला हे के बड़े-ब़े मनखे ओखर मारे पानी मांग डारथें।” तभी ले भौजी के मन हा जूड़ कैसे होवय, तब दुलरवा ला बलावय अऊ काहय – काय कहे रकहे रे ? तोला मोर नई त ओखर खियालात रखनाच चाहि। दुलरवा येहर तोर बर महतारी असन हावय तभो ले नई जानमव तेंहर काबर ओखर संग पड़थस। मोला तोर उप्पर भरोसा हे दुलरवा। अब तेंहर ओला हिंता करे के ओड़हर झन आन देबे। डेरहा के ये मया मार हा ओखर मन मां अपन जनम-जनम न मिटइया छापा बन गेइस। ओहा मन मां परतिग्या करिस के अब भजी ला हिंता करे के ओड़हर नई आवन देय।
धीरे-धीरे मां मया ला मया मिलिस। दुलरवा हा भौजी के मन मां ठौर बनाय बर कोसीस करतेच रिहिस, अऊ ओहर जइसनेच बिचारे रिहिस, तइसनेच होइस अऊ भौजी हा ओखरो ले जादा माने जतका मया बेटा हा महतारी मेर ले नई पाय सकय।
बबा हा किहिस – बाबू, दुलरवा हा मोर मेर काहय। कका मोला अतेक खुसा हावय के मेंहर तोला का बतावंव। आखिर मा भगवान हा मोर सुनिस त, फेर कका अइसे त नइ हो जाहि के मेंहर जतका खुस हावंव ओखर ले बड़का कहूं दुख पा जांव। कहूं भौजी हा मोला उही नरक मां त नइ ढकेल दीहि। जेमा मेंहर अपन जिंदगानी ला फोकट समझत रेहेंव। दुलरवा के ये गोठ मा मेंहर ओला धीरज बंधाय रेहेंव के दुलरवा एक त मया सबो ला मिलय नहीं अऊ मिल जाथे त सिरावय नइ। येह त भगवान के देनगी आय। दुलरवा हा भौजी के मया मां मुंड़ गोड़ ले अतक बुड़ गेय रिहिस के अब ओहा ओहर ओखर बिन नई रेहे सकतिस। अइसने समें मां भौजी के मइके ले जनेऊ के नेवता आइस अऊ भौजी ला नेवता मां जाना जरूरी रिहिस। ओहा गइस त दुलरवा के उछाह हर फेर खऊला गे। ओ हा मुंह ल ओथराय असन राहय। काबर के दुलरवा हा जब ले भौजी के मन मां बेटा कस मया के अंजोर ला देख डारे रिहिस, तभे ले ओखर सब्बो काम मा भौजी हा मदत देबेच करय। ओहा खावय नहीं जब ले भौजी हा नई परसे। फेर भौजी के जाय ले ओला सबो बखत भौजी के नई रहई खटकत राहय। ओहा रो डारय। भौजी तेंहर मोला छोड़के काबर गेय। का तेंहर नई जानत अस के तोर बिन दुलरवा हा खाय नई सकय।
बाबू मेंहर पहिलीच गोठिया डारे हावंव के दुलरवा के पिछु के जिंदगानी हा अबड़ेच सोगऊल रहिस हे ओखर बिसे में बताना कठिन हावय। दुलरवा के मन हा भौजीच ला बलावय। भौजी हा त अपन मइके मां मंजा से दिन ब्ताय बर गेय रिहिस हावय। ओहा का जानय के ओखर नानुक देवर हा जौन सब्बो समें अपने भौजीच मेंर रहना चाहथे, ओखर का होही, कइसे रहत होही। दुलरवा के हालत बड़ा सोगऊल रिहिस हे। वोहा रोगा के रोज सुखावन लागिस। ओहू हा का करय, लइका हा महतारी मेंर ले अलगे रहिके सुखाही नइ त का हरियाही। दुलरवा काहय हे परमेसर भौजी हा मोला छोड़ के चल दीस। कहूं मेंहर ओखरे बेटा होतेंव त का ओहर मोला अइसने छोड़ के जाय सकतीस ? नई ओहा कभू अइसना नई करे सकतीस, भगवान मेंहर मया मा अइसन अलगे रहवई ला नई चाहंव। मोला मया चाही। मोला बला ले भगवान तेमा मेंहर फेर जनम लेके भौजी मेर महतारी के मया ला पाय सकंव।
बाबू – दुलरवा के भौजी हा माई लोगन के गढ़न मां देवी रिहिस। ओहा दुलरवा ला घिनघिना के बदला मा मया करिस, अऊ दुलरवा हा उही मया के गोदी मा चिटिक सम्बलिस। तभो ले दुलरवा के मन मां आवय, भौजी के मइके जाय उप्पर ले गुनै दूसर भौजी मन कस मोरो भौजी तो नो हे। ओहा अपन अऊ भौजी के मया ला तौले। का मेंहर उच्चहा मया के हकदार हंव ? त ओला लागय के मोर असन ठलहा बर भौजी के मन मां ठौर होयच नई सकय। अइसना बिचार के आतेच वोहा रो डारय, अपन करनी ला बिचार के। हे भगवान महूं पढ़े लिखे होतेंव। बचपना मा बने ढंग लगा के पढ़तेंव त आज मेंहर अपना माय के पियास ला बुधाय बर आज अइसना नई तरसतेंव। सब्बो के मया हा आज मोला मिलतिस।
दुलरवा के भौजी हा ओला जिन्हय। वो हा बिचार करय के यहू घछला हा अपन गोड़ मा ठाड़ होय सकतिस। ओहू ला कखरो मदत के जरूरत नई परतिस। फेर अइसना गोठ मा त दुलरवा हा अपन भौजी संग पड़ डारय अऊ काहय के तें हर चहिथहस के येहू हा कमावय तेमा एला सोज रंग मा अलगे करत बन जाय, फेर मेंहर अलगे होवइया नोहंव। अइसना गोठ के बाद दुलरवा हो रोनहुत हो जाय। भौजी हा ओला समझावय फेर मनइया ये तेमा मानतिस। ओहा त खाय पिये बर छोड़ दय। अइसना मां भौजी घलोक रिसा जाय।
दुलरकवा हा एक दू दिन घर मां नई खावय अऊ भोजी मेर बोलय घलोक नहीं। डेरहा जब जानय त ऊहू ला अबड़च दुख होवय। ओहा आज ले तुलरवा ला कइसने कमती होयके बात नई होन देय रिहिस। ओमन ओला भूख मा नई राहन दंय। जइसना एक जिन नान्हें लइका के हुड़ई मा ओला समझाथें वइसने डेरहा हा दुलरवा ला समझावय। दुलरवा के हुड़ई हा ओखर मेर न नई चलय। ओला खायेच बर परय। अइसने मां भौजी के रिस हा तरपौंरी ले मुंड़ मां चढ़ जाय। वो हा डेरहा ऊपर घुसियाय। काबर तुमन ओला मनाथव “जतका बेर पेट मा मुसुवा कुदही” त खुदे खाही। डेरहा हा भौजी ला समझावय आघिर मा भौजी ला चुपे रेहे बर परय।

अध्याय – तीन

अब भौजी हा घलोक जान डारिस के दुलरवा के संग डेरहा के मारे ओहू ला मया देय बर परही। ओला अब मेंहर महतारी के मया ले अलगे नई राहन दंव। भोजी हा अब दुलरवा ला मन ले मया करे लागिस। भौजी अऊ दुलरवा के आपसी के ये मया हा अरोसी-परोसी के कलंक लगाय बर भरमहा मन के गोठ बनगे। ओमा दुलरवा के गलती हर रिहिस फेर ओहर कोनो बड़ारी बरम्हा त नो हे। ओहा का जानय के नानकुन गोंठ ला मइनसे मन अइसना बढ़ो-चढ़ो के हांसी के रद्दा निकाल लिहीं। ये बात के असली गोंठ ये रिहिस के अब दुलरवा हा अबन भौजी ला एक झिन बर नई छोड़ना चाहय। इही पाय के लोग मन ओमा खोट होही कहिके समझे लागिन। सब्बो गांव भर गोठहा पवन गढ़न बगर गे के हो न होय दुलरवा के ओखर भौजी संग गड़बडज़-सड़बड़ हे।
वाह रे समाज ते हा घलोक कतेक गिर गेय हावस। जऊन दुलरवा हा काली समाज बर कलंक रिहिस उही हा कहुं अब मया के ओघा मा अपन ला सम्हालत हे, तभो तुमन ला ओमा खोट दिखथे। फेर दुलरवा हा भौजी ला दाई कहिथे। का तुंहरमा अतको समझ नई ये।
ये गोठ हा डेरहा तीर पहुंचीस। पेर होहा दुलरवा अऊ ओखर भौजी दूनो ला बने ढंग से जिन्हय अऊ समझय। तऊने पाय अइसना गोंठ म धियान नई दीस। फेर जब भौजी आइस त गांव के माई लोगन मन के बताय ले उहू ला ये गोठ के पता चलिस। उहू ला अड़बड़ दुख होइस।
भौजी हा ये गोंठ होय के बाद दुलरवा संग थोकन झिझके असन बोलय। नई मालूम ओहा अपन न मां कोन आंधी लालुकाय बइठे रिहिस। ओहा दुलरवा ला सखोवय, दुलरवा तोर ये चाल मन बने नोहय, मोला त भऊख नइये त मोला खाय बर काबर बिटोथस, मेंहा नई चाहंव के तेंह मोला मनावस। दुलरवा तेंहा मोला कहूं के नई राहन दस। बस्ती के सब माई लोगन मन बर येहा बने बढ़िया असन गम्मत बन गेहे।
दुलरवा हा थोथना ला उतार दय। का भौजी ह मोर ऊपर काही किसिम के भरम करथे ? के ओहर ये समाज के बांधे के बेड़ी मां कसा जाय के कारन ले नई केरे सगय, के दुलरवा हा मोर बेटा आ। दुलरवा ला पियार अऊ मया के जरूरत हे अऊ ऐखर नई पाय पाय ले कहूं ओखर मन टूट जाही त दुलरवा हा जीयत नई रेहे सकय। दुलरवा ला सोज रद्दा मा लाने बर हे त ये समाज के कीरा मन कोती हमन ला देखना नई चाही।
भौजी हा दुलरवा ला समझावय, फेर दुलरवा ह मनइया नोहे! ओहर काहय भौजी, थोक बहुत दिन के मोर जिंदगानी बांचे हावय मोला अइसने तुमन के सेवा करन दव। कहूं तेंह मोला ये काम ले अलग करेके बिचार डारे हवव त ठुका बता मेंहर तोर आंखी ले जनम दिन बर दुरिहा हो जाहूं। दुलरवा के अइसना गोंठ ला सुन के भौजी हा कुछुक नई केरे सकय अऊ न दुलरवा च हा काहीं समझे सकय।
दुलरवा के भइया डेरहा हा बड़ सिधवा मनखे आय। ओकर चतका सादापन अऊ सियानी ऊपर ले देखे बर मिलय ओतकेच ओखर मन के भीतर घलोक रहिस। दुलरवा ला डेरहा हा बेटा असन मया देइस, इही मया म पले दुलरवा हा ओखरो नई सुनय। कहूं जेरहा हा थोरको रिस देखावय तो दुलरवा के लांघन सुरु हो जाय। ओला लाग के कहूं भइया घलोक त ओला अलगे नई कर देही। दुलरवा ल डर त लागय फेर ऊपर ले वहू हा नई गोठियावय। डेरहा दुलरवा ला नानापन ले जानत रिहिस हे। फेर दुलरवा हा छोटे भाई आय न तऊने पाय के खुदेच संग गोठियावय, दुलरवा हा भइया अऊ भौजी दुनो के मयारूक हो गे रिहिस।
धीरे-धीरे दिन रथिया, बीतिस अऊ कतको महिना बीत गे। डेरहा ला पेंशन मिले लागिस। डेरहा हा उही गांव मा एक ठन दूकान लगा लीस। दुलरवा अऊ डेरहा दोनों एके संग उहें कमाय लागिन। कभू दुलरवा अऊ डेरहा मा दूकान के नांब लेके बाताचीता हो जाय। दुलरवा हा छोकरपना के मारे भइया ला कुछु कांही कही डारय। फेर डेरहा घलोक हा मनखे के मुहरन मां देवता आय। वे हा बड़ धीर, अऊ समझदारी ले काम लेके दुलरवा ला सोजरद्दा में ले आवय।
दुलरवा ला मया मिलिस। जऊन दुलरवा एक ठन खुंदाय फूल रिहिस, अऊ जउन ला खूंदब मां सबोल मंजा आवय। फेर ओ होना घलोक त सच आयं के “कभू धूरा के घलोक दिन फरथे।”
दुलरवा हा अब अपन भइया संग कारोबार मां संग देय लागिस। अबत ओहा अड़बड़ खुस रहय। दुलरवा के सब्बो त बदलिस फेर ओहा अपन एकठन चाल ला नई सुधारे सकीस। ओहर आय भौजी संग रोजेच लड़ाई। ये लइका मन कस रोजेच के लड़ाई घलोक दुलरवा के दिन भर के बुता मां सामिल रिहिस। दुलरवा अऊ भौजी मा जभो बाताचीता होवय त सुनइया मन ला अइसे लागय केजइसना दू कोती लड़इया मन के जंग मा लड़ाई होते। फेर इही झगरा हा ओमन ला एक दूसर ला मया के डोरी कस के बांधय अऊ समझे के मौका देवय।
दुलरवा हा कभू अपन भौजी ला काहय के भौजी मेंहर जौन हावंव ते सबो हा तो आसिरबाद पाके ब ने हंव। देखत हस सब झिन मोला कतेक हलका समझंय। दुलरवा ला अपने मुंह म अपने बड़ई गोठियावत देखत भोजी हा काहय – कुकुर सहराय अपन पूंछी। अऊ उही उप्पर दुलरवा आऊ भोजी दूनो कठल-कठल के हांसय।
दुलरवा हा बीस बछर के हो गे रिहिस फेर ओखर त भइया अऊ भौजी ल छोड़ के कखरो धियानेच नई आवय। ओहा इदी दूनों झिन के भरोसा मां अपना बारह बछर ला बिता डारे रिहिस।
एक दिन दुलरवा हा अपन दूकाने म बइठे रिहिस। ठउका ओतकेच बेरा दूकान म एक झिन बुढ़वा मनखे आइस। ओहा आत साथ दुलरवा ल किहिस, बेटा डेरहा के इही दुकान हा आय। दुलरवा हा किहिस – हहो। ओहा उही मेर के खुसरी म बइंठिस, डेरहा के रद्दा देखत। डेरहा भइया आइस। ओहा दुरिहाच ले किहिस – रमई कका! कसगा कइसे आय हस ? अतका मा रमई कका हर किहिस – का बतावंव बेटा, मेंहर सोनकुंवर के बिहाव बर लइका खोजत-खोजत थकगेंव। फेर अभूले कोनों लइका मोर जनइक नई आइस। मेंहर गुनेंव के चलंव जेरहा मेर जावंव त ओकर ले कोनों ना कोनों लइका के पता चलिच जाही, इही पाय के मेंहर तोर मेर आय हवांव। अइसना गोठ ला सुन के डेरहा हर गांव के लकठा के एक दू झिन छोकरा मन के नांव ल बताइस, फेर रमई कका घलोक हा त नम्बरी घाघ आय। आखरी मा रमई कका हा दुलरवा के बिसे म डेरहा मेर गोठ चलीस। डेरहा हा कहीस – भई ओखर ऊपर मोर नहीं, भलूक ओखर भौजी के हक हावय। तऊन पायके एखर बारे में मेंहर तुमन ला काली बताहंव। रमई कका हा काली आहूं कहिके चल देइस।
संझा कन डेरहा ह दुलरवा के भौजी ला हांक पारिस – अरे सुनत हस, आज अनुपपुर के रमई कका आय रिहिस हे। भौजी किहिस – कोन रमई कका ? हां उही जौन हा हमन ला गया जी जात रेहेन तो रेलगाड़ी मा मिले रिहिन। डेरहा हा किहिस – हहो उही। ओखर चउदा बछर के छोकरी हावय। जेखर नांव हावय सोनकुंवर। भौजी हा संझोतेच मा कहि डारिस – अरे होलिया काबर बताथस, सोझ-सोझ कहना। हहो हहो सोज-सोज कारद हौं। वोहा तोर दुलरवा संग ओखर बिहाव करे चहथे, तोर का कहिना हे ? भौजी हा किहिस – भई दुलरवा हा त खुदे समझे के लाइक हावय। ओला छोकरी देखाय बर परही। त डेरहा हा किहिस – का दुलरवा हा छोकरी देखही। हहो काबर नई। डेरहा हा भौजी के केहे मुताबिक रमई कका ला किहिस। ओमन छोकरी देखाय बर मानगे।
बिहान दिन खाय के बेर भौजी हर दुलरवा ला किहिस – दुलरवा तोर बिहाव के गोठ बात करे बर रमई कका आय रिहिस हे। दुलरवा हा किहिस – त मेंहा काय करंव, आइस होही। भौजी हा किहिस – के तेंहर समझस कताबर नई दुलरवा। मेंहर त हहो कहि देंव। दुलरवा के मुंहर उतरगे। भौजी तेंहर मोला जियत नई राहन देस। का तोला मोह ऊपर थोरकोच सोग नई लागय। भौजी का मेंहर बिहाव नई करहूं त नई बनही अऊ दुलरवा हा भौजी के गोड़ मां मुंड़ ला दे देइस।
भौजी हरा समझावय के दुलरवा आखिर तोला बिहाव के नाव मां अतेक चिढ़ काबर हे ? फेर महूंत चाहत हौं के मोरो संग देवइया कोनो राहय। तहीं बता के महीं हर तोर कतेक चाकरी करत रहिहौं। का तेंहर मोला सुख नई देबे रे। भौजी के इही मया भरे गोठ मन दुलरवा ला बिहाव करे बर राजी कर देइन।
दुलरवा के मन हा बिहाव करेके बिचार ले अबड़ेच दुरिहा रिहिस। ओहा बिचारय के कहूं ओखर डउकी हा, असाध, लेदरी, मुँहफट, रिसहीन अऊ खरचीहीन होइस त जेखर भरोसा म ओहर जीये के आसरा पागेय उही हर मरे बर कर दीही। हे भगवान का बिहाव नई करे ले घलोक पाप होथे। का बिहाव हो जाय के बाद घलोक मेंहर अपन भइया भौजी के मया ल पाय सकहूं। नई, काबर के मेंहर देखे हावंव के बिहाव हो जाय ले मइनखे मन बदल जाथें। मेंहर देखे हावंव। ओमन अपन महतारी, बाप, भाई-बहिनी सबो ला भूला जाथें। इही पाय के दुलरवा हा बिहाव के नाव ले भागय।
अऊ दुलरवा हा इही फैसला उप्पर काहय अपन भौजी मेर, के भौजी मोला तोर पांव तरी जिंदगानी ला बितावतन दे। मेंहर एखरले अलग नई रहि सकंव। भौजी ह कहय, दुलरवा तेंहर कांही समझस काबर नई रे। मोला भरोसा हे को तोर घर वाली के आय ले मोर निभाव हो जाही। तेंहर अइसन काबर गुनखल रे बिहाव होयले तोला अलगे रहे बर परही। कहूं अइसना होय सकही। मेंहर तोर चाकरी करत हौं त का ओखर बलदा नई लेहंव, तोर ओखर मेर। कहूं तें खुदे अलगे रहे के गोठ करबे तभो मेंहर अइसना नई होवन दंव।
दुलरवा हा ये बिहाव के बिसे म अड़बड़ बिचार करिस। आखरी म इही बिचार करिस के भौजी के मन रखे बर ओला बिहाव करेच पर परही। चाहे ओला अब कतको मुस्कल काबर नइ आ परय।
दुलरवा हा भौजी के मन राखे बर अपन मन के गोठ ला टार दिस। छोकरी देखे बर दुलरवा अऊ भौजी दूनों गईन। जहाँ ले येमन पहुंचिन, रमई कका हा इंखर आवभगत सुरु करिस, अऊ उनला ओखर फल घलोक मिलिस। ओमन ला मन्झनियां खाय बर बलवाइन। दुलरवा अऊ भौजी एके संग खाय बर बैठिन। परोसे के बुता ला सोनकुंवर ऊपर छोड़े गिस। भौजी हा खायेच के बेर किहिस – ले दुलरवा बने देख ले नई त मोला भर ठोलत रहिबे। दुलरवा हा किहिस – भौजी तोर मन ले त मोला बिहाव करना हे। मोर मन के थोरै तेमा।
संझा दुलरवा अऊ भौजी दुनों झिन छकड़ा मां घर लहुटीन। रद्दा मां भौजी हा दुलरवा ला पूछिस – दुलरवा तोला बहुरिया मन आइस के नई आइस ? फेर दुलरवा हा कांही नई किहिस। भौजी हा फेर किहिस – दुलरवा देख तेंहा मोला झन पदो। मेंहर तोर मेर हारे बइठे हंव। तेहर त भइया हाथ जोर के पांव लागंव वाला हाना ला आगू करे बर चाहत हस। कइसनों होय आखिरी मां सोनकुंवर हा तोर घरवाली होही। का तेंहर मोला नई बताबे। दुलरवा हा किहिस – भौजी तेंहर फेर रिसाबे। दिरीं हा त अपन बात राखे बर मोला ये नरक मां ढकेलत हस। का तोला ये छोकरी हा बने लागिस। भौजी हा कुछु नई किहिस। बिचारे लागीस – आखिर ओकर छोकरपन हर कब जाही।
गोठिया न, का रिसा गेय भौजी। आखिरी मां भोजी ला बोलेच बर परिस। हहो छोकरी त सुन्दर हे अऊ मोन मन घलोक आगेय हावय। दुलरवा मन मां बिचारे लागीस। अघीर आघू चल के का हे अऊ का देखे बर परही ?
घर पहुंचतेच डेरहा हा किहिस – कैसे देख डारे देरानी। कैसना हावय, अरे महूंला त कांही बतावतव ? भौजी का किहिस – बने हे, फेर दुलरवा हा मोला बने ढंग के कांही नई बताइस। बिगन ओखर कहे हमन हहो कइसे काहन। डेरहा किहिस – वा भई तहूं का बने गोठ ला बताय, का दुलरवा हा तोर बात ला नई केहे सकही। मेंहर त आजेच रमई कका इहां खबर भेजत हौं के हमन तियार हन।
येती दुलरवा के मन मा बड़ोरा आय रिहिस। काम करय। ओला आगू के संसो हा खाय डारत रिहिस हे। इही संसो हा दुलरवा के छाती मां जघा बनाय लागीस। ओखर छाती मा उदुपहा पीरा उठगे। ओह तीन दिन ले कखरो संग गोठिया सके के ताकत नई।
भौजी हा दुलरवा ला मनाय के अड़बड़ बिघ करय फेर दुलरवा त बड़ टेकी रिहिस। ओहा मानबे नई करय। आखरी मां भौजी हा रिसागे, उहू ला दुलरवा के उपदरव के मारे छांव लागीस। ओहा रो डारिस अपन दुलरवा के हेकड़ई ऊपर।
दू, तीन दिन के गेय ले दुलरवा के तबीयत हा कुछुक सुधरिस दुलरवा हा त तीन दिन मां भौजी संग बने ढंग ले काहीं बोले घलोक नई सकिस। ओहर भौजी ला बलाईस । भौजी, ओ भौजी आना ना। भौजी हा भुकुवाय रिहिस। ओहा कहिस – काये, काये। भौजी आ न मोर तीर बइठ। फिर भौजी हा काहत चलदिस के मेंहर का करहूं डाग्डर मेंर जा। दुलरवा हा रो जारिस, आखिर मोर ठिकाना कहां हे। हे भगवान, मोला कहूं अब तेंह फेर भटकाय त… फेर तोरो फिकर नई ये मोला। मेंहर त भौजी के भरोसा…।
भौजी चल दिस त दुलरवा घलोक भौजी तीर जाके बैठगे, फेर भौजी हा नई गोठियाइस। मुक्की भौजी ला देख के दुलरवा हा रो डारिस। भौजी का तेंहर मोला जियन ननई देबे। भौजी हा दुलरवा के ये गोठ ला नई सुने सकिस उहू हा वइसने कहिस जौन ओतका बेर ओला कहिना ठीक रिहिस।

अध्याय – चार

दुलरवा के जिंदगानी के इही गोठ हा सब्बो के घर के गोठ बन गेय हावय। मेंहर त नई समझ पावंव। आखिस हांसे खाय के दिन मां ये दिन हा कहां ले आय। फेर घलोक गेय दिन हा एक ठन तिहार आय। इही दिन मनसे मन अपन मन के मइल ला निकाल के फैंक देथें। अऊ कहूं अइसना नई होतिस त मनखे झटकन मर जातिस। काबर के मन मा उठे बयार हा निकल जाथे अऊ एक-दूसर ला फेर मया करे लागते। उल्लूर परे बंधना हा फेर कसा जाथे। कहूं ओ बयार ला नई निकालय त ओहा मन मां रहिके दम ले सकत हे।
दुलरवा हा ठान लिस के ओहा भौजी ला कभू गलती बेवहार करके दुख नई होवन दय। भौजी के खुसी बर अपन मन के लालसा ला दबा दिस।
दुलरवा के बिहाव रमई कका के घर लगगे। येमन आंय तो साधारण खात पियत मनखे फेर अपन छोकरी मन ला पढ़ाई-लिखाई बर बने हरहिंछा छोड़ देय रिहिन। इंखर परवार हा विद्या के भंडार असन रिहिस। फेर विद्या के हरहिंछा के मारे सोनकुंवर के बिचार घलोक सुतंत्र हो गेय रिहिस। ओहा दूसर के भरोसा म जिअइला नई भाय सकत रिहिस। फे ओहर महतारी बाप के छोटे दुलौरिन बेटी आय। तऊन पाय के अबलेच मया मोह मां पले रहिस।
हां, त दुलरवा के बिहाव होगे। पहलीच रात के दुलरवा हा सोनकुंवर ला बताइस – …सोनकुंवर तेंहर पढञे-लिखे समझदार हस। तोला सिख देवई हा बने नोहे, फेर तोला भौजी संग सच्चा पियार के बेवहार करे बर परही। ओला अपने महतारी बराबर मानबे अऊ ओहा जऊन बुता ला तिआरही तेला मोर तियारे आय समझके करे बर परही। सोनकुंवर तेंह ऐसे झन गुनबे के में हा तोला मया नई करंव। पेर मय हा सगर दिनेच भोजी के चाकर रहेंव। उही ला मोर असन गंवार ल सुधारे के बूता करे बर परिस हे। नई त ये दुलरवा हा आज नई जानंव कौन नरक मां सरत रहितिस। मोला भौजीच हा जिया दिस। सोनकुंवर हा दुलरवा के गोठ मां धियान नई दीस अऊ औ रात मा दुलरकवा हा सोनकुंवर के हहो नहीं ला नई समझे सकिस।
सोनकुंवर हा एक अठेरिया रिहिस, फेर नेंग असन ओला अपन मइके जाय बर परिस। सोनकुंवर हा जाय बर आघू दुलरवा मेर भेंट करे बर लौहाय रिहिस। अऊ ओती दुलरवा हा सोनकुंवर ला देखे बर तरसत रहिस। दूकान मां ओखर मन नई लागत रिहिस। ए दूनों झिन के तरसई के सोर कोनों ला नई रिहिस। फेर सच्चा पियार मां अतका बल होथे के ओहा बिन बताय चेहरा-मोहरा ले सबो झिन ल पता चल जाथे।
का होइस के दूकान मा एक झिन मनखए हा नून लेयबर आइस अऊ झोला ला देके कहिके चल दिस – भइया नून तउल के राख दे। मेंहा सागभाजी लेके आवत हंव। अऊ मनखे हा लहुट के आके अपन झोला ला मंगिस त ओहा ठाड़ सुखागे काबर के दुलरवा हा नुन छांड़ के ओखर बलदा मां दू सेर दार भर दय रिहिस। डेरहा के धियान ए कोती गिस। ओहा दुलरवा ला किहिस – दुलरवा तोला का हो गेय हावय। कहूं तोर देंह ह बने नइेय त घर जा, अऊ रमई कका ला टेसन अमरा देबे। काबर के हमर बैला-गाड़ी ला राधेबाबू ले गेय हावय।
दुलरवा हा झप के उठ गे फेर लजाके फेर उहीं मेर बइठ गे। तब डेरहा हा कहिस – जास काबर नई रे। दुलरवा कांही नई कहिस अऊ घर चल दिस।
दुलरवा हर घर पहुंचते देखिस के आघू मां भौजी ठाडे़ हावय। दुलरवा के उतरे मुंह ला देख के भौजी ह पूछिस – दुलरवा काये, देह बने नइये का ? अऊ भोजी हा दुलरवा के मुंह मं हांथ फिरोइस। दुलरवा हा सोनकुंवर मेर भेंट करे बर लहहाय रिहिस, फेर ओंखर भौजी के आघू ले उठे के हिम्मत नई होत रिहिस। काबर के येहा थोकन हलकापना असन लागथे के जौन भौजी ला ओहा दाई कहिथे ओखरे आघू मां सोनकुंवर…। दुलरवा बइठे रहिस।
रेल के बेरा होगे। रमई कका हा आके कहिस। अरे बडे़ बेटी अब काबर बेरा करत हव। रेल आय के बेरा त होगे। भौजी हा किहिस – हहो ठोका ताय, बेरा त कुछुके नइये। अऊ दुलरवा ला किहिस – दुलरवा जा बहू के संदूक ला उतार के ले आ। दुलरवा ह तुरते दौड़ीस। देखिस सोनकुंवर हा ओखर फोटु ला अपन छाती मां लगाय रोत रहिस। ओला अभोले नई जान परे रिहिस के ओकर पाछू मां दुलरवा ठाड़े हे। दुलरवा हा सोझे नई ठाड़े रही सकिस। ओहा झटकन संदूक ला उठाइस अऊ खाले लान के ठाड़ होगे। सोनकुंवर घलोक उतरिस। भौदजी के पांव परके ओहा टांगा मां बइठ गे। टांगा चले लगिस। दुलरवा ह बइठे तेखर पहिलिच रमई कका हा किहिस – बाबू चिट्ठी पत्री जरूर लिखहू। दुलरवा किहिस – चिट्ठी… हहां, हहो राजी खुसी के चिट्ठी। दुलरवा काहीं बैलय तेखर पहिलिच टांगा हा आघू रेंग गेय रिहिस। दुलरवा हा मन मां किहिस वाहरे जिपरहा डोकरा, तेहां मोला इही मेर ले बिदा कर देय, अऊ तोला मेंहर चिट्ठी लिखरूं।
दुलरवा के मन मां दुख रिहिस, फेर ओहा कोनो झन जानतीन कहिके गुनत रिहिस। एक दू दिन ओला सोनकुंवर के अडबड़ सुरता आइस। थोरकेच दिन बीते ले फेर ओहा अपन भइया भौजी के नांव जपे लगीस। ओला सोनकुंवर के मिलव हा सपना असन लागय।
येती सोनकुंवर हा घर पहुंचते चिट्ठी लिखिस। दुलरवा के हाथ मां जब चिट्ठी हा पहुंचिस त ओला पढ़े के ताकत नई चलिस। ओला ओहा खी सा मां धर लिस। काबर के डेरहा भइया ओ मेर बइठे रहिस।
दुलरवा हा बड़ परेशानी मां संझा के दरसन करिस। दूकान बंद कर के घर पहुंचिस अऊ सोझ अप खोली मां पहुंच गे। चिट्ठी ला पढ़े लागिस, ओला चिट्ठी मां अतेक मंजा आवत रिहिस। ये दुलरवा घलोक ठउका हे, रोज खाय बर देरी करथे, अपन संग मां ए चंडाल हा महूंला लांघन राखथे। दुलरवा हा चिट्ठी ला दसना में दाब के राख दिस। हांथ-गोड़ धोईस अऊ रंधनी घर मां पहुंचगे। काये भौजी, काये। मुसुवा कूदत हे पेट मां, अऊ गरीब ला गारी देत हस बिन कसूर के। ले परोस दे। भौजी हा दुलरवा बर खाय ल परसीस अऊ दुलरवा के आघू मां सरका दिस। ये काये, का तेंहा नई खावस। अरे खहूं नई त का तोहे गढ़न लांघन रहौं। तेंहा खा मेंहर थोकन बेरा ले खाहूं। दुलरवा ला काहीं समझ मं नई आत रिहिस। आखिर भौजी ला का होवत हे। दुलरवा हो डरिस – भौजी तेंहर अपन बर परस तभेच मेंहर खाहू ं। भौजी हा किहिस – अब मेंहर नहीं तोर दुलहिन हा तोर संग खाही। दुलरवा हा उठे लागय। अच्छा, बने हे, तेंहर खान नई दस तब नहींच सहीं। फेर भौजी ला वइसने ेबवहार करना परय। दुलरवा खावय मनटुटहा असन, अऊ भौजी घलोक।
दुलरवा हा खा के खटिया म लोटे रहाय। फेर ओला नींद नई आव। ओला भोजी के बदलई के मारे दुख लागय। हे भगवान तेंहर मोर बर का बिचारे हस, अरे बाता त दे, ये करमछंड़हा ला केती-केती धक्का खवा के जियाबे। पेर ये पथरा के छाती के, कहूं तेंहर मोला फेर ले दुख देय त मेंहर तोर हुकुम के बिना तोर दुवारी ला खटखटाहूं। मेंहर तोला अराम नई लेन दंव। बीस बछर ले त तेंहर मोला खेलौना बना के राखेय। फेर अब तेंहर मोरले नई खेले सकस, आखिर तोरो त छाती हे। अरे – तोर दरबार मां आके मेंहर तोरे आगू तोरे हिंता करव ये – हर बने बनही। थोरको त रस खा देउता मोर गरीब उप्पर…। दुलरवा रो डारय ओखर मन हल्का लागय अऊ ओहा हा सुत जाय।
दुलरवा मंझनिया घला खाय बर घर नई गईस। एती डेरहा हा खाय बर गिस त भौजी किहिस – दुलरवा ला भात खाय बर पठो देहव, ओरा चहा घला पी के नई गे हे। डेरहा हा दूकान मां पहुंचते दुलरवा ला खाय बर भेजिस।
भौजी, ये भौजी, अरे देना खाय बर भूख लागत हे। भौजी हा किहिस – आ गेय रे ऐंठुल, आज तेंहर चहा काबर नई पीए ? का तेंह गुनत रहे के महूं हा चहा झन पियंव। दुलरवा हा किहिस नई भौजी, भला मेंहा काबर अइसना चाहहूं। मेंहर त तुमनके मया मां बंधा के जीये सके हंव अऊ तुहीला लांघन राखे के मन… नई भौजी, नई, मेंहर अइसना कभूच नई गुने सकंव।
भौजी सच्ची बता आखिर तेंहर अइसना काबर गुन डारथस। भौजी हा किहिस – अच्छा चल पहिली खा त ले। दुलरवा खाय बर बइठिस। दुलरवा हा खातेचखात भौजी ला किहिस – भौजी मोला अइसे लागथे कहूं तेंहर मोला भूला देय त मेंहर कइसे जिए सकहूं, ये बिन ठिकाना के सनसार मां। फेर का तेंहर सबर दिन बर अपन ए गोड़ मां ठउर देय सकबे। काबर नहीं मेंहर तोला ओ बखत ले पहिलिच कहीं डारे हावं के मेंहर तोला अपन ले अलगे नई राखे सकंव, फेर कहूं तहींहा अलगे रहिहूं कहिबे त मोर का। नई भौजी, नई मेंहर तोरेच छांव मां अपन जिंदगानी ला पहा देहूं कहिके गुनथों अऊ भगवान, ला बिनोथंव के ओहर मोला भौजीच संग राखय। मोला सपना म घलोक अइसना झन दीखय के मोला भौजी ले अलगे होय बर परही।
येती सोनकुवर ला गेय छय महीना बीत गेय रिहिस। ये बीच मां सोनकुंवर के कई ठन चिट्ठी आइस। फेर दुलरवा हा एको ठन टिट्ठी के जवाब नई देय सकिस। सोनकुंवर के जम्मो चिटठी मां लिखे रिहिस के एक बेर तुमन आके अपन ऐ दासी ला दरसन देवव। मोला चौबीसों घंटा तुन्हर सुरता लागे रहिथे। तुमनला मोर किरीया है, अपत आहू। फेर दुलरवा हा ओती धियाने नई दिस, सोनकुंवर के गोठ कोती।
एक दिन उदुपहा तार आइस। लिखे रिहिस के दुलरवा ला झप के भेज दव। तार डेरहा ला मिलिस। ओहा दुलरवा ल झप ले जाए के तियारी करा दिस। दुलरवा हा ससुरार जाय बर िनकल परिस।
रेल अपन बेरा मा आगे। दुलरवा एक ठिन ठौर मां बइठ गे। येहा दुलरवा के पहिलीच मौका आय। अब ओहा थोक बहुत दिन बर भौजी मेर ले अलगे जात रिहिस। ओखर मन हा अभो भौजी के गोड़ में रिहिस। दुलरवा बिदा होईस तब भौजी के आंसू हा रुकतेच नई रिहिस।
संझा होइस। डेरहा हा दूकान बढ़ो के घर आइस। दुलरवा के भौजी ला दुवारी मा ठाड़े देख के अचंभा होइस। ओह किहिस – अरे आज का गोठये के तेंहर दुवार मेंरन ले आ गे हावस। भौजी हा मनटुटहा मन ले किहिस – का बतावंव, मोर दुलरवा हा ससुरार गे हे ना तऊने पाय के मोला घर हा सुन्ना लागत हे। डेरहा ठठा करिस – का बतावंव मोरो एको झन भौजी नई होइस, नई त महूं हा भौजी के मया पा के धन्न हो जातेंव। भौजी हा किहिस – टार तहूं घलोक हा, का उटपुटांग गोठ करत रहिथस।

अध्याय – पाँच

डेरहा हा हांत गोड़ धोके रंधनी घर मां जाके बइठ गे। भौजी हा खाय बर परोस दिस। डेरहा हा किहिस – आज तोर संग देवइया नई ये त का मेंहर तो संग दे दंव ? आना आज मैं अऊ तैं एके संग खावन। भौजी के चेहरा मां हांसी खेलगिस। अऊ कहिस – बुढ़वापना मां, का अइसना गोठ हा तोला बने लागथे। डेरहा हा किहिस – का आठे बछर मां मेंहर बुढ़वा होगेंव। तहूं ता का कइथस – कहूं सिरतोनेच बूढ़ापा आ जाही त फेर अइसना दिन देखे बर सपना हो जाही। अरे सुन त – आ ना, आज संगे मां खाबो। दूनों झिन मिल के खाइन पेर भौजी हा सबर दिनेंच दुलरवा संग खावय, तऊन पायेके आज ओला कइसे बेढंग के लागत रहिस हे।
दुलरवा अपन ससुरार पहुंच गे। ससुरार म ओखर बर पहिलीच ले अबड़ेच तइयारी कर डारे रिहिन। दुलरवा के समझ म नई आवत रिहिस के आखिर तार काबर करे गीस बिहाव होय के बाद ओहा पहलीच बेर ससुरार आय रिहिस, तउन पाय के ओला झझक लागय। झझक के मारे ओहा कखरो मेर पूछ बने नई समझत रिहिस अऊ रात कब होही कहिके रथिया के रद्दा देखत रिहिस।
आखिर मां अबड़ेच असकट मां दिन कटिस अऊ रात अइस। खवई पिअई होय के बाद दुलरवा ला एक ठन कुरिया मां अमरा दीन। उहां सोनकुंवर हा अपने देवता के पूजा करे बर पहलीच ले तइयार बइठे रहिस। दुलरवा हा दसना मां बइठतेच रिहिस के सोनकुंवर हा दऊड़ के ओखर गोड़ मां गिर परिस। दुलरवा हा सम्बलिस अऊ उठा के सोनकुवंर ला दसना मैं बैठार लिस। अरे सुनकुंवर तेंहर अइसना काय करत हस। का हो गे हे ? का मोर मोर ले कांहीी गलती होगे हे, का होगे हे बता ना। सोनकुंवर ला अपन ये लेड़गा घरवाला उप्पर रिस लागत रिहिस हे अऊ सोग घलोक। सोनकुंवर हा कहिस – तुमन मोर चिट्ठी के जवाब काबर नई देव। तोट चिट्ठी नई आये ले मेंहर कतेक तरसत रहेंव। मने मन रोवंव अऊ आंखी हा तोर निरमोही के वांव ले के आंसू बोहावत रिहिस। फेत तोला त कभूच मोर सरकता आवत रिहिस ? दुलरवा मन मा गोठिया डारिस – नई सोनकुंवर नई, मेंहर रोजेच तोर सुरता करंव फेर सुरता करे ले का होथे ? मन हा घेरी-बेरी बीते समे ल सुरता देवाय अऊ ओखर मारे मन में दुख के राज हो जावय। मनखे मन घलोक रोनहुत मुंह ला चिन्ह डारंय अऊ ओ मन ला केहे के ओढ़र मिल जाय के एहू का गोठ आय के बिहाव होत बेर नई लागीस अऊ इंखर जकहा पना आगे। इही पायके कांही नहीं कहे सकेंव! अऊ चिट्ठी के जवाब नई देय के गोठ कहेय तब मेंहर चिट्ठई ला कभूच-कभूच लिखथंव। ये तोला जानना चाहि। अच्छा अब रिस ला छोड़ ये त बता के तार काबर भेजे रेहेव। अतका कहतेच सोनकुंवर के मुंह हा हांसी ला नई लुकाय सकीच अऊ ओहा किहिस – सिरतोनेच देंहर निच्चट लेड़गा मुंहा हावस ओ तोला बलायेच बर भेजे रेहे अन। अतका ला सुतेज ओहर लजाय असन हो गे। पेर तभो ले ओहर हार के घलोक जीत गे हवंव समझत रिहिस।
थोकन बेरा ले एती ओती गोठ होत रिहिस। तहां ले नींद आय लागीस, तभो ले सोनकुंवर सुतिस नई, अऊ मुडसेरिया म बइठ के मुंड़ी मां अपन हाथ ला फिरोत रिहिस।
बिहिनिया होगे। सुरुज भगवान हा अपन बेरा मां उगे। दुलरवा हा रोज के काम ले फुरसद हो के बैठका खोली कोती गिस। सोनकुंवर नास्ता के जोख मढ़ावत रिहिस। ओह जाके एक ठिन खउसरी मां बइठ गिस। सोनकुंवर हा दुलरवा के आघू मां नास्ता के मलिया ला मढ़ा दिस अऊ उहू हा एक ठन मलिया ला लेके बइठ गे। दुलरवा ह किहिस – सोनकुंवर अकेल्ला खात-खात अड़बड़ दिग होगे आना आज संग संग खाबो। सोनकुंवर किहिस अऊ कोने आ जाहीं त का कइहीं अरे कोन आही ? अऊ आइच जाही त काय कइही। तेंहर मोर अस के आ जाही तेखर। सोनकुंवर ला हांसी लागिस। दुलरवा हा ओखर हंसई मं संग देय लगिस अऊ सोनकुंवर के फरा मुंह मा पेड़ा ला भर देइस अऊ ओहा दुलरवा के मुंह मा डारिस।
चार दिन ल दुलरवा हा काट डारिस। फेर अब इंहा बने नई लागिस। ओला भौजी के सुरता ह ताला बेली कर देवय। ओला भौजी मेर ले अलगे होय आज चार दिन हो गेय रिहिस। ओहर अपन सारी बिजय ला बला किहिस – कहूं बनय तो सोनकुंवर ला पठो दे अऊ अपन खोली कोती रेंग दिस।
अरे गा होगे, तुंहर मुंह काबर उतरे हे। का हमन ले कांही चूक होगे। दुलरवा हा किहिस – सोनकुंवर आज मोला भौजी के सुरता हा तरसावत हे। मोर आंखी हा ओखर दरसन करे बर तरसत हे। का तहूं हा चलबे। सोनकुंवर हा कुछु नई किहिस अऊ अंखी मं आंसू भरे के भरे बाहिर निकलगे।
माई लोगन मन के मन हा कतेक अपस्वार्थी होथे। ओहर अपन घर वाला ला कभू दूसर औरत के बड़ाई करत नई सुने सकय, ओहा दाई काबर ना होय।
सोनकुंवर उप्पर के पटाव म चढ़गे। ओखर मन मां दुलरवा अऊ भौजी के बिषे म नई बताय सकंव के का-का गोठ आइस। ओला लागिस के मोर दुनिया अब उजड़त हे।
आखरी मां सोनकुंवर हा जाय के फैसला कर लेइस। सोनकुंवर के दाई हा किहिस – बेटी, तेंहर अभी कइसे जाबे। अभी त तोर कुराससुर हा लेवाय के सोर घलोक नई पठोय हे। सोनकुंवर के छाती हा त भरम मां फाटे जात रिहिस। ओहा किहिस – मोला त इन्खर संग रहे बर हे। कुराससुर ले काय मतलब हे।
दुलरवा ला पठोय के सब्बो तैयारी कर देय गीस। रेल के बेरा हा लकठिया गे। रमई कका हा टांगा लान के ठाड़ करिस। दुलरवा हा आघू ले टांगा म चढ़ के बइठगे।
अरे, ये रोवई गवई तेंहर कोनों धुरिहा थोरे जाथस। फेर तभो ले रोवई हा कमती नई होइस। रमई कका हा आंखी के आंसू ला पोछत, सोनकुंवर ला टांगा मां लान के बइठार देइस। टांगा टेसन कोती चल दीस।
रेल एक घंटा पाछू रिहिस। रेल के अबेर होवई हा सोनकुंवर ला नई अखरिस, फेर दुलरवा ला अखरे लागिस। हे भगवान, तहूं मोला पदोवत हस – झट कन मोला मोर भउजी मेर अमरा दे। फेर कहां, दुलरवा घलोक गाड़ी के अगोरा मा एती ले ओती किंचरे लागिस। रमई कका हा सोनकुंवर के लकठा मां बइठ के कांही कुछु फुसुर-पुसुर गोठियावत रहिस।
कइसनों कर के एक घंटा बीत गे। रेल टेसन मां ठाड़ होगे। दुलरवा अपन समान ला एक ठिन डब्बा मां भरिस। गाड़ी मां अबड़ेच लट्ठा रिहिस। अतके के बेठई त कहूं जाय, सामान रखई घलोक मुस्कुल पर गेय रिहिस। रेल हा इहां तीन मिलिट रुकय तउने पाय के एती ओती के कांही सोचब बिचारब ला छोड़ के खिड़की कोती ले डब्बा म समान फेंकई सुरु कर दिच। ओतका बेर डब्बा मा गोहार असन पर गे। फेर दुलरवा के धियान त ओ कोती थोरकोच नई गीस।
हांथ कइसनों कर के समान ला त भीतर मां कर डाहिस। अब एक मुस्कुल त कट गेय रिहिस, दूसर के बेरा होइस। अब बइठे केती जाय। फेर दूसर मुस्कल ला सोनकुंवर हा बना डारिस। अइसे होइस के दुलरवा हर बिचारतेच रिहिस के एक झन भलमानुस हा सोनकुंवर ला किहिस – बेरा तो होगे, चढञ जावना। अऊ ओहा दुआरी मा ठाड़े मनखे मन ला अपन चंघा मां बइठे पर किहिस। दुआरी उघरिस अऊ ओमन खुसर गिन। सोनकुंवर ला त ठउर मिल गे। फेर दुलरवा ठाड़ेच रिहिस। दुलरवा के मने मन हिजगा होत रिहिस हे के जौकी मन मां का बात हे कि उखर सब्बो जघा काम बन जाथे अऊ हमन के नई बनय। कहूं महूं डौकी होतेवं।
दुलरवा अइसने बिचार मां भुलाय रिहिस के रेल हा छुट गे। अऊ तहां ले दुलरवा रेल के रंग ढंग मं भूला गिस।
दुलरवा के टेसन आगे। अऊ दुलरवा दुवारीच ले तुरते भुतिहार मन के मुंड़ मां समान ला मढ़ा दिस। अब ओमन ला उतरई घलोक हा मुस्कल होगे। काबर के बाहर वाला मन भीतरी खुसरे बर अऊ भीतरी वाला मन बाहिर निकले बर, लकपकाय रिहिन। आखरी मां ओमन धक्का खात खाले मां उतरिच गे।
येती भौजी हा दुलरवा के रद्दा देखत रहिस दुलरवा कब आही। आ जा ना रे दुलरवा, मोला तोह अबड़ेच सुरता आवत हे। आज त कौंवा हा छानी म चारा बांटत रिहिस हे। का तेंहर आजो नई आवस ?
भौजी हा दुलरवा के सुरता करतेच रिहिस के टांगा हा दुवारी मां ठाड़ होइस। टांगा के ठाड़ होयके आरो पातेच भौजी हा दुवारी मां पहुंचगे। देखिस के दुलरवा अऊ सोनकुंवर दूनों झन आए हैं। ओला अड़बड़ खुसी होइस। दुलरवा हा टांगावा वाला समान उतारे बर किहिस अऊ अपन हा भौजी के गोड़ा मां गिर गे। भौजी ला देखते ओखर आंखी मां आंसू भर गे। ओहा किहिस के मेंहर तोला देख बर कतका तरसत रहेंव जानत हस ? भौजी हा दुलरवा ला उठा लिस अऊ किहिस अरे, तुलरवा कइसे बैहा हो गेय हस। चल भीतर चल, मेंहर सोनकुंवर ला लेके आवत हंव। दुलरवा सोज अपखोली मां गईस अऊ खटिया मां सुतगे। भौजी हा हांक पारिस – अरे दुलरवा आना भइया रोट खा ले। दुलरवा हा कहिस – आवत हौं भौजी, तहुं अपन बर हेर ले। मेंहर आज रोटी तोरेच संग खाहूं। दुलरवा हा ओन्हा बदल के खाय बर आईस। देखिस के भौजी हा परोस के बइठे हे। बेरा होगे का भौजी। अइसे लागत हे तोला अबडड़ेच भूख सागत हे। भौजी हा किहिस – हहो मोला त भूख लागतेच हे, फेर का तोरपेट मां ससुरार के लपडुआ हा किंचरतेच हे। हहो रे भौजी तेंहा सच काहत हस, पेट ह अब ले फूले हे। आखिर ससुरार के माल ये ना। ले बने हे आ खा ले। पेर लप्हरसी मारबे। अभी सोनकुंवर ला घलोक खवाना हे। दुलरवा हा भौजी के कहे मान के रोटी खाय बर सुरु कर दिस।
जब सबो झिन रोटी खा डारिन तब दुलरवा हा किहिस – सोनकुंवर तंय चल मेंहर अभी भौजी मेर ले आवत हंव। अऊ पेर भइया मेंर घलोक जाय बर हे। सोनकुंवर अपन खोली कोती चल दिस अऊ दुलरवा हा भौजी के खोली कोती। दुलरवा हा अपन भइया डेरहा के पांव परिस अऊ अपन भौजी तीर भूंया मं आके बइठ गे। थोकन बेर ले तह डेरहा हा दुलरवा संग ओखर ससुरार के गोठ करत रिहिस। ओहा तार के बिसे मां पुछिस, तब दुलरवा हबा कांही जवाब नई देइस। लजा के भौजी कोती देखे लागीस। भौजी हा बिन हांसे नई रेहे सकिस कहीस कइसना भाई आव के सब्बो गोठ ल पूछथव, अरे का येहा जम्मो गोठ ला तुमन ला बता देही। डेरहा हा कहिस – ले भई नई पूछंव, मैं त सूतत हौं। हहो दुलरवा तेंहा बिहिनिया दूकान खोले बर चल देबे। मेंहर काली रतनपुर जाहूं।
दुलरवा अऊ भौजी रात के एक बजत ले कोठियावत रिहिन। येती सोनकुंवर ला रिस लागत रिहिस। कइसना नमनसे ये अब लेनई आइस। सोनकुंवर के मन मां पाप आगे। आखिर भौजी ले ओला अतेक मया काबर हे। कहूं कांही अऊ तो नोहय। हे भगवान, कहूं अइसना होईस त मेंहर अपन मइके चल देहूं। अऊ कहूं उंहो नई रेहे सकंव त कोनो सहर मां मास्टरी कर लेहूं। का मेंहर इन्खरे मन आसरा में हों। सोनकुपंवर के धुकधुकी हा बाढ़े लागिस। ओहा उठिस अऊ भौौजी के खोली कोती चलिच जइसने वोरहा दुवारी मं पहुंचिस अऊ उहां जौन देखीस ओहा ओखरमन के गोठ के भरम ला अऊ पक्का कर दिस। दुलरवा हा भौजी के कोरा मां मुड़ला राखे धीरे-धीरे कोठियावत रिहिस।
ठउका रे भगवान तेंहर डउकी मन ला काबर अतेक भरमहीन बना देय। हमन रद जात मन हा अतेक भरमाहा नई होवन। अऊ डउकी मन ला भरम होतीस कोनों अऊ जघा, फेर जऊन दुलरवा हा भौजी ला महतारी ले जादा मया करय तेखर बर, सोनकुंवर के मन मां काबर ठौर देय। का ओहा नई जानय। नई जानय के किवमन के कइस लिख दिन – ‘आंचल में है दूध और आँखों मं पानी’ मेंहर त कहिहौं ‘अंचरा म है भरम, अऊ आंखी मं ओढ़हर।’ अइसना बिचार करइया डउकी मन ये नई समझय के का कभू अइसना होय सकही। महतारी बेटा माँ, भाई बहिनी मं परदा। कमती समझइया आंय ना तऊने पाय के त ओमन ला जिंदगानी बने ढेग के चलाय बर एक सहारा के जरूरत बने रहिथे।
एक बज गे। भौजी हा कहिस – दुलरवा जा सुत एक बजगे। दुलरवा उठिस अऊ अपन खोली कोती चल दिस। अरे ये काये, सोनकुंवर का हो गेहे ? अरे गोठिया न। फेर सोनकुंवर के ससवाई हर बाढ़ते जाय। ओहर कहिस मेंहर अब एक छिन इहौं रहना नई चाहंव। तेंहर अलगे रहिबे त मेंहर रहिहौं, नई त मोला मइके पठोदे। दुलरवा ह ये हाना ला नई समझे सकिस। दुलरवा हा कहिस – आखिर तोला का हो गेहे सोनकुंवर ? सोनकुंवर हा कहिस – कांही त नई होय ये, फेर तोर भौजी संग अतेक मया हा मोला नई सुहावय।
दुलरवा के मुंड़ हा किंजरे लागिस। ओहा लकठा मा माढ़े अराम खुसरी मां बइठ गे अऊ किहिस – सोनकुंवर ये मेर तेंहा भूलावत हस। तोर मन मा जौन बिचार उठे हे ओखर से तोला तोकन बेर बर अराम मिल जाही। फेर जन भर रोय बर परही। फेर तोला मोर बारे मां ठऊका-ठऊका पता नइये। मोर भौजी…। मंझोतेच म सोनकुंवर हा किहिस – मैं सब जानत हौं। तेंहर मोला ठग के गोठ झन कर। दुलरवा ला ये सब सुनई हर अनसहयुक होत रहिस। हे भगवान, कहूं मोर हाथ ये करमछाड़ही ऊपर छूट झन जाय। ओहर उठिस अऊ खोली के बाहिर जाय लागिस। सोनकुंवर हा दुलरवा के हाथ ल धर लीस अऊ गरिस – बने हे तेंह जल दे। पेर अतका सुरता कर ले भैया अऊ भौजी के जायदाद मं मोर जरूर हक हे फेर वोला बांटा करे के नइये।

अध्याय – छ

सोनकुंवर के ऊपर पहाड़ गिर परिस। ओखर मन हा भरभरागे। अपन परोसी मन कोती ले अपन ददा मेंर तार देके बिचारिस। काबर के सोनकुंवर हर पढ़े-लिखे रहिसे, तौने पाके ओला भरोसा रहिस, के ओहर अपन घर वाला ले अलगे रहिके घलोक जी खाही। जिहां ओखर मनखे ह दूसर के चाकरी करत हें। रात-रात भर तरसत रहिस। ओला एकै ठन रद्दा दिखिस के मोर इहां ले चलेच देवई म बने बनही।
येती दुलरवा घलोक रथिया भर नइ सुते सकिस। सोनकुंवर के बिचार ऊपर दुख होवत रिहिस। आखिर पक्का कर डारिस। हे भगवान, मोर अकिल काम नइ करत हे, काय करंव ? ये सबो ह भौजी के मारेच होइस। नई त मेंहर ये झंझट म काबर परतेंव। अभी त बछर दिन घलोक नई पूरे ये अऊ मोला दुिनया म मरे बर परत हे। सोनकुंवर चाहे मोर ले अलगे हो जाय। फेर मेंहर भौजी के जिन्दगानी ले कभू अलगे नई होय सकंव। चाहे मोला कतको दुःख काबर नई झेले ला परय। दुलरवा इही किसम के बिचारतबिचारत सुत गे।
अरे दुलरवा उठ ना, बिहिनिया हो गे ये, का तोला दूकान नई जाय बर हे। दुलरवा उठ त पहलिच ले गेय रहिस, ओहा उही मेंर ले चिचिआइस, आवत हौं भौजी। दुलरवा उतरिस अऊ बिन चहा पिए दूकान चल दिस। अड़बड़ बेरा होय के पीछू सोनकुंवर मेंर भौजी ह पूछिस – का दुलरवा हा अब ले सुतेच हे। सोनकुंवर हा पहलीच ले जरे भूंजाय बइठे रिहिस। ओहर कहिस – नई ओहा तुन्हर चाकरी करे बर गे हे। भौजी हा दंग रहिगे। हे बगवान, ये काये ये, सोनकुंवर अइसना आज काबर कहिस। ओमन धीर धर के कहिस – सोनकुवंर तोला अइसना करू गोठ नई गोठियाना चाही। का दुलरवा हा मोर चाकर आय। अऊ का कमाना हा चाकरी आय, फेर अइसनो त नो हय के दुलरवा च हा कमाथे। उहू मन रात दिन एती-ओती भटकत रइथे। अऊ भौजी हा रो डारिस। सोनकुंवर तोला अइसना नई कहना चाही, अऊ न अइसन बिचारना चाही। आखिर हमन बहनीच त होथेन। अऊ का ये हा बने आय के छोटे बहिनी हा अपन बड़े बहिनी ला बिन सोचे बिचारे कुछ कहि दय। सोनकुंवर मेंहर तोला अपन छोटे बहिनी समझत हौं। हहो कूहं मोर ले सिरतोनेच कांही गोठ हो गे होवय तब कहिबे… सोनकुंवर।
सोनकुंवर त भुंइया म नई रहिस, ओहा त आज बादर ला छू डारे बर चाहत रहिस। ओला डर रिहिस के दुलरवा ला, कोनो ओखर से लूट झन लंय। ओला घरवाला के मया कहूं नई मिलय।
ओहा किहिस – तेंहा का समझतहस, मेंहर उन्खरे सहीं निर-लठिंगरा नई औं। मेंहर तोला बने ढंग ले समझथ हौं। तेंहा मोर ओधा मा अपन सबो काम चलाना चाहत हस। अऊ अइसन रहिस हे त तें हा ओखर बिहाव काबर करे। तेंहा अपन तलब बर मोर जिन्दगानी अबिरथा कर देय।
अब भौजी हर समझगे। सोनकुंवर हा आखिर का कहना चाहत हे। ओहा कुछु नहीं कहिस अऊ अनपन खोली को दुआरी ला देके भीतरी मां जा के बइठ गे।
भौजी ला अबड़ेच दुख होइस। का ये सबो बने होत हे। दुलरवा त मोला महतारी कहिथे फेर नई अब मेंहर ओला कोनो हालत मां अपन संग नई राखे सकंव, चाहे काहीं हो जाय। मेंहर त ये मया मां त सरग-नरक दूनो ले चल देहों। भौजी हा ठान लिस के अब दुलरवा संग मां नई रेहे सकंव।
संझा होइस दुलरवा घर पहुंचिस। अरे भौजी, कहां हस, आज अब ले दिया नई बारे गेय हे ? का बात ये ? अरे भौजी केती हस। दुलरवा हा सब्बोक खोली मन ला देख डारिस फेर ओला सिरिफ सोनकुंवर हा दिखिस। दुलरवा हा पूछिस – भौजी कहां हे ? सोनकुंवर हा भौजी के नावेच मां उफना गे। का मेंहर घर के रखवार अंव, जेमा जानत रहेव के कोन केती हे अऊ कौन नई ये ?
दुलरवा हा हकबकाय ठाड़े रहिस। ओहा अपन खोली के कंडिल ला बारिस अऊ ओला धर के भौजी के खोली कोती गईस।
अरे भौजी, का हो गेय तोला, जऊन आज अपन दुलरवा ला बिन खवाय सूतत हस। भौजी हा काहीं निही गोठिआइस। अरे भौजी, गोठियाना का होगे हे।
भौजी हा अपन मन ला पथरा करके कहिस, दुलरवा तेंहर का मोला जियन नई दस।
काबर भौजी, दूसर के जीव देवइया के जीव ला कोनों काबर मांगही। अरे भौजी, कहूं तैं काहस अऊ भगवान हा मोर सुनय त मेंहर अप जिन्दगानी के एक-एक सांसा तोला दे दंव। फेर थोकन मेंहर अपने बर जरूर राख लेहूं, तेमां मरे के बेरा अपन भौजी के दससन करे सकंव।
भौजी हा दुलरवा के गोठ ला सुनके बिचापर मां उबुक-चुबुक होय लागिस। का दुलरवा हा मोर पथरा असन गोठ ला सुने सकही, अऊ का मेंहर कहे सकिहौं, तभो ले कहेय बर परही, ओमन सुनहीं त क कहहीं।
दुलरवा सुन, आज मेंहर तोर ले आखरी बखत एक ठन भीख मांगत हौं।
का भौजी तेंहर मोर दरिद्दर मेंर भीख मांगत हस। अरे हुकूम दे अपन बेटा ला।
दुलरवा मेंहर तोह महतारी अंव, ऐला तेंहर मानथस ना।
हहो काबर नई, एला त त गाँवभ जानत हे।
त मोर मन हे के तेंहर अपन ये महतारी ला कंलक लगब ले बंचा ले।
भौजी तोर असन बने, मयारुक अऊ सुग्घर चाल वाली ऊपर कलंक लगाय के काखर सकती हे्। सुरता राख भौजी तोर ऊपर कलंक लगवइया ला मेंहर त, मोला समझथस ना भौजी।
हहो दुलरवा, मेंहर समझत हौं। फेर मोर ऊपर कलंक लगवइया हर अपनेच आय तऊन पाय के ओला कांही कहवई सुनई हर बने नोहय। तैं नई जानत अस के आज तोर कारन मोर कतेक हिंता होइस हे। मोला त कोनों ला मुंह देखावब घला हा मुस्कुल होवत हे।
दुलरवा हा ननइक लइका- गढ़न रोवन लगिस, अऊ भौजी के गोड़ मां मुंड़ ला मढ़ा के कहे लगिस। भौजी कहूं मोर नांव लेके तोर हिंता होय रे त तेंहर मोला जऊन चाहथ सजा दे सकत हस।
दुलरवा के आंसू बूंद-बूंद बोहावत जात रिहिस हे। वोहा रुकतेच नई रहिस। जइसे समुन्दर ले अलग होवई ला नदिया हा नई सके सकत ये। ओहा मिले के आसरा मं बोहात जात होवय।
दुलरवा मेंहर चाहत हंव के तेंहर अब अपन घर ला अलगे कर ले। दूकान मां करहूंतें चाहस त अपन भइया के संग रहि सकत हस। फेर मोर संग अब कांही नता झन राखबे।
दुलरवा के कलेजा धकधकाय लगिस, मुंड़ ह किंजरे लगिस। ओहा कांही बिचारेच नई सकिस, ये का होगे अऊ का होही।
दुलरवा ह कहिस – भौजी तेंहर अइसना काहत हस जऊन हा मोला बिसवास देवाय रहे के दुलरवा मैं तोला अपन जीयत ले अलग नई करंव… भोजी तोला मोर दुलरवा के किरिया हे, मोर से का गलती होय हे… भौजी बता ना ?
दुलरवा हा नीनइक लइका असन भौजी के गोड़ मां परे-परे सुसकत रिहिस। अऊ भौजी के करेज्जा के कुटका-कुटका होत रिहिस। हो भगवान! तैं आखिर काय चाहत हस, बता दे ?
दुलरवा त कांहीच नई समझे पात रिहिस। ओला भौजी के हुकुम मानई जरूरी रहिस। दुलरवा हा भौजी के मान राखे बर अलगे रहवई ला ठऊका समझिस।
संझा होइस। डेरहा भइया घर आइस। ओला घर के रंग ढंग हा आज उपपुटांग लागिस। ओमन हांक पारिन – अरे दुलरवा, तोर भौजी कहाँ है ? दुलरवा ए दुलरवा… अरे तोला का होगे ?
भौजी हा कहिस – कांही नहीं, चलव खायबर परस देथंव।
का दुलरवा हा खा डारिस ?
मैं नई जानंव।
डेरहा ह फेर हांक पारिस – दुलरवा ए दुलरवा… ओती ले काहीं जवाब नई आइस त डेरहा हा भौजी ला कहिस – देख त दुलरवा हे धन नई ये। मोर बलाय ले त ओला अब ले आ जाना रिहिस।
भौजी मन के धुकधुकी बाढ़े लागिस कहूं दुलरवा… नइ ये, अइसना नई होय सकय। भौजी हा दुलरवा के खोली कोती गईस – दुलरवा ए दुलरवा… कोन सोनकुंवर, गा होगे… दुलरवा कहां हे ?
सोनकुंवर के घेंच हा रोत-रोत बइठ गेय रिहिस हे। कहिस दीदी, मैं नहीं जानंव ओमन कहां चल देय हें। मेंहर त समझत रहेंव के अब ले ओहर तुंहरे तीर होंही।
हे भगवान! ए मेंहर का कर डारेंव… अरे देखव त दुलरवा घर में नई ये, कहां गय ?
डेरहा हा कहिस – आ जाही, बइठे होही कोनों मेर। ओला भात ता खा लेना रिहिस।
भौजी हा कांही नई केहे सकीस। ओखर मन मां त धुकधुकी माते रिहिस। हे भगवान! मेंहा का कर डारेंव। भौजी…. अरे कौन दुलरवा, कहां गेय रेहे रे ? मेंहा त समझत रहेंव के मोर दुलरवा हा छोड़ के चल दिस…। नई दुलरवा तेंहा अइसना नई करे सकस। तेंहा मोह बिन कहूंच एक छिन नई रेहे सकस।
दुलरवा के भौजी का होगे दुमन ला, का मोला खाय बर नई दस।
भौजी हा जइसे जागिस… हहो! हहो आवथंव। भौजी हा डेरहा ला खाय बर परसिस… फेर खर मन हा दुलरवा बर छटपटावत रहिस, जइसे गाय हा अपन बछरू के नई दिखे ले ओखर बेचैनी मां गररैया देत होय। फेर भौजी हा त चिचिआय घला नई सकय।
ऐती दुलरवा हा मन मां उदास, हार मान के रथिया घर लहुटिस। बखरी के दुवारी बंद रिहिस। मन मां बिचारिस – काबर मंही कोनो कोती चल दंव – हहो मोर जवईच हा बने होही… फेर का मेंहर कभू अपन भऔजी के दरसन करे सकहूं… नई। काय करंवु… कांही बुझ नई परत ये। दुलरवा ला चक्कर आय लगिस अऊ उही मेर भुंइया मं गिर गे।
दुवारी के धक्का ला सुन के भौजी उठिस… सुनत हव, कोनो अभीच्चे दुवारी ला धकियावत रिहिस हे… उठव ना। डेरहा के नींद हा भन्नाय रिहिस। ओहर कहिस जाना दुलरवा आय होही। मोला सुतन दे।
भौजी उठिस अऊ ओहर कपाट ला उघारिस… अरे दुलरवा का होगे तोला बोलत काबर नई अस… दुलरवा अरे आवव ना, दुलरवा बिहुस परे हे… भगवान जानय कहां के नींद आय हे, अरे सुनत हौ।
ये कड़बड़ई चिचयई के गोहार ला सुन के डेरहा उठ गे। काये ? अरे दुलरवा का होगे – देखत का हस उचा ओला भीतर लेग चल।
भौजी अऊ डेरहा दुलरवा ला उठा के भीतरी मां लेगिन। डेरहा डाग्डर ला बलाय बर दंवड़िस। ऐती सोनकुंवर घलोक चचयई के गोहार ला सुन के आगे। ओहर दुलरवा के गोड़तरिया कोती ब इठ गे। काबर के सिराना मां बइठ के भौजी हा दुलरवा के मुंड़ ला दुलार कर के हाथ किंचारत रिहिस।
सोनकुंवर के मन हा भीतरे-भीतरे जलकुकड़ई के आगी मा बरे लगिस। एती त तुलरवा के तबियत बने नई रिहिस अऊ अइसनों मां घलोक सोनकुंवर के जलकुकड़ई। हे भगवान! तेंहर डउकी मन के मन मां ये काय भर देय। ओला बने खराब काहीं के चिन्हारी नई राहय। येहा बने आय के डउका मेंर डउकी के रहना जरूरी हे अऊ ओला रहिना भी चाही, फेर येह त बने नोहय के ये नाजुक बेरा म इर्सा करे लागय। फेर मोला त अइसे लागय के सोनकुंवर के खराब दिन आगे रिहिस। तऊने पायके त अइसना बेरा म घलोक ओखर मूंड़ मां रिस आऊ जलकुकड़ई के भूत चघे बइठे रिहिस।

अध्याय – सात

डेरहा डाग्डर ला लेके आइस। डाग्टडर हा देख के किहिस, के डराय के काहीं बात नइये। गरमी के मारे होगे हे, एला कोनो किसिम के दुख नई होना चाही। ओखर धुकधुकी हा कमजोर पर गेहे।
दुलरवा के तबियत सुधरे लगिस। ओखर पूरा-पूरा बने होय बर एक महीना लागगे। भौजी हा एक महिना ले दुलरवा के अबड़ेच सेवा करिस, फेर ओहर सोनकुंवर ला अखर गे। ओला अइसे लागिलस के अब ओखर कांही जरूरतेच नई ये। ओहा अपन मइके मं तार भेज दिस। मेंहर आय चाहत हंव। मोर मन उदास रहिथे।
सोनकुंवर के ददा आइस अऊ सोनकुंवर हा अपन मइके चलदिस। घर मां डेरहा ला छोड़ के कखरो मन नई हिरिस के सोनकुंवर हा अपन मइके जावय, फेर सोनकुंवर हा चलदिस।
एती दुलरवा हा फेर अपन बूता सम्हारै लागिस। दुलरवा के चिट्ठी लेखे उपर ले घलोक कांही जवाब नई आइस। दुलरवा समझगे ओहू हा चिट्ठी लिखई ला बने नई समझिस।
भौजी ल सोनकुंवर के जवई के बड़ दुख रिहिस। ओखर मन हा उतास राहय।
अरे भौजी कहां हस… आ हा… आज बर झट के मिल जाही। का बात ए ? अऊ उहू हा अतके झटके… ओहा जऊन पिड़हा मां भौजी बइठे हिरिस तौने मां एक कोनटा मां बइठगे।
भौजी हा कहिस चल रे, तेंहर बड़ दुष्ट हस, छुआ-छूत्ती काहीं ला नई जानस, कहां न कहां ले घूम के आय अऊ रंधनी मां खुसरगे।
दुलरवा हांसे लागय अऊ भौजी घलोक हा ओखर उपदरवी सुझाव के मारे अपन हांसी ला नई रोके सकिस।
दुलरवा ला रंधनी घर मां बइठेच-बइठेच अड़बड़ बेर होगे त भौजी हा झगना के कहिस – कस रे दुलरवा दूकान नई जाना ये कारे ? तेंहर त अब बिन संसो के होत जाथस, तोला अपन आघू मां दूसर के संकोच नई ये।
दुलरवा हा किहिस – तोला का हिजगा होथे, मेंहर त अपन भौजी तीर बइठे हौं।
भौजी काहय बड़ आय हस भौजी वाला, अरे जाना तोर भइया अकेल्ला होही।
हहो जात हौं। अऊ दुलरवा मुंह ला मटकावत चलदय।
तुलरवा अऊ डेरहा संगे रथिया घर आगे। डेरहा खाके अपन खोली मां अराम करत रिहिस। ऐती दुलरवा अऊ भौजी दूनो खाके उठिन। आगू भौजी पाछू दुलरवा दूनोच खोली मां पहुंचिन।
भौजी हा गिरीस – दुलरवा तेंहा जा, मोला आज अबड़ेच जोर के नींद लागत हे।
दुलरवा गरिस – फेर भौजी मोला ता नींद नई आत ए।
कस रे तोला नींद नई लागत ए त का महूं जागंव, नई बबा तें जा में त सुत हूं। अतका कहिते कहत भौजी अपन खटिया मां बइठगे। फेर दुलरवा गईस नई, उहू हा भुंइया मेर परे पोता मां बइठ गे।
भोजी हा चुगली करे असन कहिस – देखव त, दुलरवा हा नई मानत ए – मोला ऐखर चाल, बने नई लागय।
डेरहा हा कहगिस – भई येहा तुंहर रोज के गोठ आय। ते जान अऊ तोर दुलरवा।
आखिर भौजी ला बइठे बर परय। दुलरवा अऊ भौजी ओतेक बेर ले गप्पा छाड़त राहंय जबले डेरहे के नाक नई बाजे लागय।
सोनकुंवर के चल देय ले घलोक दुलरवा मां कांही फरक नई आइस। त का ओला सोनकुंवर के जरूरत नई रिहिस ए, रिहिस ए, काबर नई रिहिस हे।
ओहा चाहय अपन सोनकुंवर ला। ओला सोनकुंवर के जरूरत रिहिस हे। ओहा मया करय सोनकुंवर ला फेर पहिली भौजी तब सोनकुंवर। फेर सोनकुंवर अइसना नई चाहय। ओखर कहना रिहिस के तें मोर अस, अऊ तोला मोर रहना परही।
सोन कुंवर चल त दिस। फेर ओला उहों अराम नई मिलिस। ओहा रथिया चमक जाय। दुलरवा ओखर मन मां रस बस गेय रिहिस। ओहा फेर लहुट जाय के मन करय। फेर ओखर अपन गुरूर जाग जाय अऊ ओला लागय के ओखर देवता हा ओला लेगे बर जरुरे च आही।
सोनकुंवर ला जाय तीन महिना जगर हो गेय रिहिस। अब त दुलरवा के चिट्ठी घलोक नई आवय। ओला बिस्वास होय लागिस के ये सब्बो हा भौजी के चाल आय। ओखर मन मां फेर उही बड़ोरा आय लागय। अऊ ओहा बिचार के समुन्दर म उड़ाय लागय।
कहूं भौजी हा अपन बदनामी के डर मांच दुलरवा के बिहाव करिस हे। हे भगवान! कहूं ये हा सच होही त मोर जिंदगानी ही जरतेज जरत बितही।
एती दुलरवा के मन मां का गुजरिस, ओहू हा उदास रेहे लागिस। भौजी हगा ओला रोज टोकंय। अरे दुलवरा जाके ले आन ना बहु ला। काबर तैं मोर पीछू हाथ धोके परे हस। मेंरह जानत हंव अऊ समझत हौं के तेंहा मोर बेटा अस। फेर तेंहर ऐला नई जानस का, के येहर समाज मां गोठियास के गोठ हो जाही।
भौजी के ये गोठ ला दुलरहा नई सुने सकीस, ओला अन-सहऊ होगे। ओखर मन हा चिचिया डारिस भौजी… तेंहा मोर जिंदगानीच ला बदल देय। काबर करे मोर बिहाव भौजी… काबर करे…। फेर भौजी अतका खियाल राहय के मेंरह अपन भौजी ला कभूच दुख नई देय सकंव। तेंहर जानत हस सोनकुंवर हा काबर गईस हे ? ओहर चाहत रिहिस हे के मेंहर ओखर संग नवां घर बनावंव। भौजी मेंहर पहिलीच कई घांव केहे रेहेंव के मोर बिहाव झन कर, फेर तोर मारे काहींच नई चलिस…।
दुलरवा रो डारिस, भौजी मोला सोनकुंवर ले जादा तोर जरूरत हे। कहूं तहूं मोला नई पूछे त त दुलरवा कोनों मेर के नई रहही। फेर तेंहर उही समाज के रोना रोत हस। तेंहा डराथस काबर। ये लठगरा समाज ले, एखर त कामेच आय बनेला बिगाड़ना, अऊ िबगड़े ऊपर ले ठाड़े-ठाड़े गम्मत देखना। मेंहर अइसना समाज उप्पर थूकथंव, जेंहर सांप बरोबर फेन निकाले दांव देखत रहिथ। एहर उही समाज ए ना जौन हा मोला हीन समझय अऊ मेंहर बेवांरस मन के संग मां बेवांरस बने येती ले ओती फिरंव। ओ बखत तुंहर ये जलकुकड़ा समाज हर कहां चल देय रिहिस। कौन नई जानत ए के तें अऊ भइया घलोक मोर कोती नई नहारतेव त आज मेंहर चोर, डाकू अऊ नामी गु्डा बन गेय रहितेंव। तभो त समाज हर तुमन ला अंगरी देखातिस अऊ कहितिस अरे इही हर ये भलमानस के लोफ्फर भाई, जेर बेवांरस मन के संग मां गली-गली किंचरत रहिथे। भौजी तोला समाज ला देखना हे त मोला छोड़ दे।
भौजी हा दुलरवा ला छाती मां लगा लिस। दुलरवा मेंहर तोला अलग नई राखे चाहंव। तेंहर मोर बेटा अस अऊ मोरेच रहिबे। फेर तोला मोर किरिया हे तेंहर सोनकुंवर ला ले आन, मेंहर अतकेच चाहत हौं।
दुलरवा हा फैसला करिस के ओहर सोनकुंर ला आने बर जाही, अपन भौजी बर।
दुलरवा हा भौजी के केहे मुताबिक सोनकुंवर ला आने बर चलीस। गाड़ी के आवाज मां ओहा किव मन कस बिचार मां बूड़ गे। के भगवान। डउकी के मन मं जऊन मया के ढेरी भरे हे तऊन का मोर सोनकुंवर के मन मं नई ये। सोनकुंवर हा कतेक नासमझ हे, अरे काहीं त सोंचतिस… कहूं भौजी नई होतिस त मोर ये गोसइंया कहथय तऊन दुलरवा जऊन आज हावय तऊन नई रहितिस। अइसने बिचार मां फन्दे-फन्दे ओहा अपन ससुरार पहुंचिस। दुलरवा ला आय देख के घर के सब्बो झिन खुसी होगे। सोनकुंवर घलोक अड़बड़ खुस रिहिस फेर, तिरिया चरित्तर के मारे ओहा दुलरवा कोती लहुट के नई निहारिस। दुलरवा कोती धियाने नई दे रहिस।
रतिया होइस दुलरवा के सुते के बन्दोबस्त करे गईस। खा-पी के दुलरवा सोज अपन खोली मां गईस अऊ खटिया मां पर गे। खटिया मां परते ओला नींद आय लागिस। रद्दा के थकासी ह ओला सुताइच दिस। ओला सुतत देख के सोनकुंवर हा आके लहुट के चल दिस।
बिहिनिया दुलरवा 6 बजे उठ जाय फेर ससुरार के नींद आज ओहा 9 बजे उठिस, ता ओहा देखिस लकठा मं माढ़े कुसरी मां बइठे सोनकुंवर हा कांही पढ़त रिहिस हे। ओहा अपन रोज के आदत परे रिहिस तइसने कहिस – हे भगवान आज के दिन हा कइसे कटही। फेर सोनकुंवर घलोक ठगा जाय तइसना नई रिहिस। कहिस – हहो बने आय, ऊहां बिहिनिया ले अबन भौजी के दरसन करत रहे, इहां त मेंहर तो कालेच आंव।
दुलरवा किहिस – देख लेय न, बिहिनिया-बिहिनिया ले झगरा हे भगवान! ये देबी मन ले बचाबे, अऊ अपन रोज के बूता मां लग गे।
नहाई धोवई ले फुरसत होके दुलरवा हा अपन खोली मां ओन्हा बदलत रहिस के ओतका मां सोनकुंवर हा चहा नास्ता धर के आ पहुंचिस।
चाय के आनन्द लेत-लेत दुलरवा हा किहिस – मेंहर तोला लेय बर आय हौं। भौजी हर तोर अड़बड़ सुरता करथे। हमन ला आजेच जाय बर हे।
सोनकुंवर किहिस – हहो बने ये, थोक बहुत आपमन सुरता करथव, अऊ थोक बहुत तुम्हर भौजी हा। फेर मोला त ओ घर मां गोड़ नई दना ये अऊ कहूं जबरदस्ती करबे त मेंहा त नई फेर मोर मुदार् हा उहां जाही।
तभी त बड़, बड़े ज्ञानी, किव अऊ साहित्त के धुरंधर मन घलोक माई लोगन ला नई समझे सकिन। पेर ये दुलरवा हा त एक अनाड़ीच सरिख रहिस हे।
सोनकुंवर के एक गोठ मां दुलरवा हा चमके बरोबर होगे। ओखर दिमाक काम नई करिस। आखरी मां येहर मोरे गोसईनेच आय, मोला येलाअपन जिंदगानी मोरच संग बिताना हे। तभो ले अभी ओला काहीं नई कहनाच ला ठीक समझिस।
मंझनिया दुलरवा हा कोनो ला कांहीच बताय बिन टेसन चल दिस। जतका बेर ओहा घर ले बाहिर निकलत रिहिस त दुवारी मां ओखर सारी श्यामा हा पूछिस – भांटो अभी कहां जाथस ? दुलरवा ह कहिस – कहूं नई जांव, थोकन किंजर के आवत हौ।
टेसन पहुंच के दुलरवा ह अपन घर के टिकिस कटाइस अऊ गाड़ी मां चढ़गे। रेल मां भीड़ अड़बड़ रिहिस। जौन डब्बा में दुलरवा चढ़िस तउनों मां अड़बड़ गरदी रिहिस। फेर दुलरवा ला ठउनर िमल गे। दूसर टेशन मां दुलरवा ला अपन जघा ला छोड़ना परिस। काबर के ये टेसन के चढइया मन मां एक झन डोकरी रिहिस, जेकर देंहा हा कांपत रिहिस। दुलरवा हा ओला अपन ठौर मां बइठार दिस अऊ अपन हा डब्बा के दुवारी मां चढे उतरे के लोहा के डंडा ला धर के ठाड़ होगे।
दुलरवा ला चैन नई रिहिस। ओखर मन हा ओला भौजी अऊ सोनकुंवर के बिसे मां बिचारे बर पेलत रहिस हे। ओहा अपन मन मां ओ दूनों के बिसय मां बिचारत रहिस हे।
एक कोती सोकुंवर अऊ, दूसराकोती भौजी। सोनकुंवर हा अलगे रहे के फैसला कर डारे रिहिस अऊ भौजी जऊन हा सोनकुंवर के नई आय के मारे समाज के हिंता के सिकार होत रिहिस।
अइसने बिचारत-बिचारत दुलरवा के करेजा हा धड़के लागिस। अऊ वइसनेच गाड़ी हा पुलिया मं आइस ओखर धड़धड़ आवाज मां दुलरवा हा अपन मन ऊप्र कब्चा नई पाय सकिस। ओखर हांथ हा दरवाजा के डंडा मेंर ले सरक गे अऊ ओहा रेल ले गिर परिस।

अध्याय -आठ

एती संझा घलोक दुलरवा हा घर नई पहुंचिस त रमई कका हा दुलरवा के घर तार भेजिस के दुलरवा के कहूंच पता नई चलत ए। कहूं उहां चल दिस होही त हमला झटकन खबर करव।

इहां रथिया तार पहुंचिस। दुलरवा के भइया ह तार पढ़िस अऊ सन्न खा के रहिगे।आखिर दुलरवा गइस कहाँ य़ कहूं ओहा कांही उटपुटांग त नई कर डारिस। ओहा अपन खोली मां पहुंचीस। दुलरवा के भौजी जाग गेय रिहिस। ओहा पूछिस – कहां के तार आय ? फेर डेरहा अभी बताइला ठउका नई समझिस अऊएती ओती के कोठ मां ओला टरका दिस। काबर के ओहा जानत रिहिस हे के दुलरवा ह जतका येला चाहथे तेखर ले कतको जादा येहा दुलरवा ला चाहथे। तउने पायके ओला बताना ठउका नई समझिस।
बिहिनिया डेरहा हा पूछिस अरे सुनत हस ? दुलरवा ह कबले आहूं केहे रिहिस ?
भौजी हा कहिस – भई ससुरार गेय हे अऊ ओहू मां कोसईन ला लेवाय बर, दू-चार दिन रहिके लहुट आही… आवन त दे ये बखत मजा बता हौं बाबू के, मोला आने जाथे त एक दिन दुभ्भर होजाथे बाबू ला, बने हे, आवन त देव।
संझा होइस। भौजी ह दुवारी मां टांगा ला ठाड़ होत सुनिस अऊ झटकन परदा के ओघा ले टांगा कोती छांके लगीस। फेर दे काये… रमई कका… अकेल्ला ? रमई कका ला अकेल्ला आय देख के भौजी के मन मां रंग-रंग के बने अऊ असुगुन बिचार हा आय लगिस। फेर ओहा अपन ला संभारिस अऊ रमई कका के संग भीतर मां आ गे।
भौजी हा पुछिस – दुलरवा काबर नई आइस ? अतका के सुते रमई कका के हुस उड़ागे, ओखर डोकरा आंखी ह रो डारिस। ओहा गित आंसू ला रोके के अनसकऊ कोसीस करत किहिस – ऊंखर त आज तीन दिन ले पता नई ये!
भौजी के छाती हा धड़के लागिस। हे भगवान! कहां गे मोर दुलरवा हा ? भौजी चिचिया जारिस – दुलरवा का तेंहर मोला छोड़ के… नई तेंहर अइसना नई करे सकस… मेंहर तोर महतारी अंव ना… तेंहर मोला छोड़ के नई जाय सकस, दुलरवा… तैं मोला छोड़ के नई जाय सकस।
भौजी अतेक बेहुस होगे के ओला अतको हुस नई रिहिस के ओमेर दुलरवा के भइया घलोक ठाढ़े हे। ओहू अपन आंसू ला नई रोके सकिस। ओमन भौजी ला समझाइ तेंहर संसो झन कर दुलरवा हमन ला छोड़ के नई जाय सकय। मेंहर आजेच गजट मां छपवा देथंव। हमर दुलरवा आही, अऊ जरूर आही।
आज चार महिना होगे, दुलरवा के कहुंच पता नई लगे सकिस। कतको कोसीस कर डारिन फेर आखिरी मां फल कोन्हों नई निकरिस।
अब बस्ती के सब झिन के मन मां दुलरवा बर मया भरा गेय रिहिस। जौन मेंर देखव दुलरवा के गोठ, मनखे मन काहंय के सच ये दुलरवा के राहत ले ये घर मां चारों पहर आनंद छाय राहय। फेर आज उहां चारों कोती दुखे-दुख के राज होगे हे। भगवान ये घर के खुसी ला वापिस कर दे। फेर जहाँ ले ओ निर्दयी हा रिस जाथे तब कखरो मनाय ले नई मानय।
एती रमई कका के घर पहुंचत ले सोनकुंवर के मन हा उदास हो गेय रिहिस। ओहा अपन करनी ऊपर पछतात रिहिस। ओला अपन चारों कोती अंधियार दिखत रिहिस। फेर उही हाल रिहिस के “अब पछताय ले का होथे, जब चिरई चुग दिस खेत”।
एती दुलरवा के गंवाय के बाद ले भौजी हा खवई पीयई ला छोड़ देय रिहिस। डेरहा हा लाख बेर समझाइस फेर तभो ले बने ढंग के बेरा मां नईच खाइस। भौजी हा अपन ला कुलटनहीन समझे लगिस। मंही दुलरवा ला खा डारेंव। ओला कभूच अराम ले नई राहन देंव। भौजी दिन-दिन कमजोर होत गईस अऊ एक दिन ए मिटइया संसार ले बिदा ले लिस।
डेरहा हा भौजी ला बचाय बर सबो करिस। आघिर मां ओखरो हार होगे।
दुलरवा रेलले गिर के घलोक नई मरे सकिस। फेर जी के घलोक कोनो ला नई जानन दिस के ओहा जियत हे। ओहा गजट पढ़ डारे रिहिस। ओखर जी हा भौजी के दरसन करे बर छटपटा जावय। फेर ओहा नई चाह के मोर मारे भौजी ला समाज मां बदनाम होय बर परय।
भौजी के मरे के हाल सोनकुंवर मेंर घलोक भेजे गिस। ये सोर ला पातेच सोनकुंवर हा अपन मुंड़ ला पबीट डारिस। हे भगवान। तेंहर मोला काबर ओ हासत खेलत घर के सतनानास करे बर पठोय। तेंहर मोर मन मां, मोर मां काबर अइसना संसो आने। ओला अपने ऊपर घिनघिन लागे लागिस। ओहू हा अपन मन के उठत आंधी ला नई रोके सकिस। ओहा गोहार पार के रोय नई सकत रिहिस। काबर के ओहर रोतिस त ओहर चोचला असन लागतिस। पहली सोनकुंवर हा भौजी के मनमाने हिंता करे रिहिस। ओमन सब झिन काय कहहीं। सोनकुंवर के मन मां उदासी हा डेरा डार दिस। ओहा दिन-िदन अकेल्ला रहे लागिस अऊ ओला अकेल्ला रहई हर सुहाय लागिस।
अब सोनकुंवर जब अकेल्ला मां बइठय त ओला आइसन लागदय के भौजी हा ओखर आघू मां आके ठाढ़े हगोगेय हावय अऊ काहत हे… के सोनकुंवर तेंहर मोर दुलरवा ला संभाल ले…. देख ना ओहा केती-केती भटकत हे। सोनकुंवर हा चिचिया डारय। हे भगवान मोला भौजी मेंर भेंट कहा दे अब मेंहर ओखर बिन नई जीये सकंव ?
एती दुलरवा बाहिर राहत चार महिना बीत गेय रिहिस। ओहा अब भौजी के दरसन करे बर तलफत रिहिस। ओहा एक छिन बितावब हर मुस्कुल होत रिहिस। ओखर मन मां का जनी कइसे होत रिहिस। फेर का करय। ओहू ला चुप्पे चुप रहवई हा भावत रिहिस हे। फेर बिन भौजी के दरसन करे ओहा मरना घलोक नई चाहत रिहिस। ओखर सब ले बड़का साध रिहिस के मरे के पहिली भौजी के जरूर दरसन करही।
फेर ओ करमछइड़हा का जानत रिहिस के गे ओखर भौजी हा एक महीना के आघूच चल दिस हे… ओला इही सनसार मां तलफत छोड़ के। वो हा जऊन भौजी के दरसन करना चाहत रिहिस हे ओखर छांव के दरसन घलोक मुस्कुल रिहिस हे।
एक दिन दुलरवा के जी हा अतेक हड़बड़ाय लागिस के ओला अपन अकेल्ला मां रहय घलोक बने नई लागिस। ओहा सड़क, बाजार अऊ खोर गली जेती मन लागिस घूमते रिहिस। ओला उदूपहा अपन गांवक के पटेल के दरसन होगे। ओहा दौड़िस अऊ ओला धर लिस अऊ किहीस बबा तुमन कब आयेव ? फेर दुलरवा ला ओहा चिन्हेच नई सकिस। कहीस – मेंहर तोला नई चिन्हेंव – तेंहर कौन अस? दुलरवा हा किहिस – मेंहर दुलरवा आंव।
दुलरवा के नां ला सुनेत पटेल के मुंह हा अइला गे। ओला ए दुब्बर-पातर दुलरवा ला देख के सोग लाग गिस। आखिर येहर इहां काय करथे, एला त मनखे मर गे समझथ। पटेल हा दुलरवा ला किहिस – दुलरवा तेंहर इहां ठाड़े हस अऊ ओती त तोर घर हा उजाड़ परगे। का तेंहर अपन घर के जमा झिन ला भूला गे ? तो भौजी हा ये असार-सनसार ले बिदा ले लिस। मेंहर त आज कल इहें रहिथों। जमुना हा मला बताय रिहिस के ओ सुख के घर हा खंडहर परे हे।
दुलरवा हा पटेल के गोठ ला हक्का-बक्का के सुनत रिहिस। ओखर मुंड़ किंचहे लागिस। उही सड़क तीर दुलरवा हा बइठ गे।
पटेल साहेब हा रेंग दिए रिहिस। दुलरवा वा तरसत देख के।
दुलरवा उठिस अऊ सड़क कोती चिचियावत भागिस। भौजी ठाड़ हो, महूं आते हौं… मेंहर तोर बिन नईरहे सकंव। तेंहर मोला छोड़ के चल देय भौजी, फेर मेंहर काबर जियत हौं। का मेंहर ये पीरा ला सहे सकहूं। ओहा अतेक जोर ले भागत रिहिस हे अऊ अतेक भूलागेय रिहिस अबन भौजी के सुरता मां के ओला अतके सोर नई रिहिस के आघू कोती ले मोटर आवत हे। दुलरवा हा जइसने चौरस्ता मां पहुंचित मोटर के छड़ हा ओखर कन्हया मां खुसरगे।
मनखे मन भीड़ एकट्ठा होगे। जोनमन देखिन त देखे नई सकिन। लहू के मारे सड़क हा लहू-लहु-लुरान होत रिहिस। ओला लकर लऊहा अस्पताल पहुंचाइन। उहां दुलरवा के दू दिन सुध नई आइस। जब सुध आइस त ओतका बेर खोली मां बिमरहा मन ला छोड़ के अऊ कोनों नई रिहिन, वोहा ऊहां ले भाग निकलिस।
कइसनो करके ओहा घर पहुंचिस। अरे या काये तारा ? का होगे। का घर मां कोनों नईये, केती चलदिन सब झिन ?
वे हा गौटियां तीर पहुंचिस। कका भइया कहां चल दिस ? ओहा बताइस तोर भइया कहां दूसर बिहाव कर लिस अऊ दूकान ला बैंच के नई जानन केती चल लिस। ओहा घर ला न ई बेचिस। ओहा कहाय के येहर दुलरवा के आय।
दुलरवा हक्का-बक्का हो गेय रिहिस। का लिला ये सनसार के, मोर भौजी मरिस त दूसर तियार, भइया ला घलोक का होगे। का भौजी हा सच काहय के ओमन का करहीं। मोर त सबे कुछु तेंह करबे। तेंहर सच काहस भौजी, इहां सबोच चीज हा फेर मिल जाथे, महूं ये दुनिया में नई रहना चाहंव।
वोहा भटकत नंदिया कोती भागीस। ओहा नंदिया मां जइसनेच गिरे बर करत रिहिस, ओलाअइसे लागिस के पानी मां भौजी के अवाज भरे हे, ओहा कांही काहत हे। दुलरवा तोर भइया हा त मोला भुलवारदिस, तहूं हा मोला भुला देना चाहत हस ? मोर नाव मेटागे दुलरवा… मोर नाव मेटागे।
दुलरवा ठो ठिकिस…। कौन भौजी… मेंहर तोर नाव ल नई मेटावन दंव। जतका खूंट ले मोरले बने सकही “भजी नाव ला अम्बर कर देहों।
दुलरवा हा लहुट आइस। ओहा घर के तारा ला टोर दिस अऊ घर मां रहे लागिस। दुलरवा हा मन मां भौजी के यादगारी मां कांही बनाय के परतिग्या करिस।फेर ओहा पढञे-लिखे त रिहिस नइए। ओहा बनिहार करईच ला बने समझिस, ओला दिन भर जऊन काम मिलय उही ला करय। अपन पेट काट के ओहा पैसा सकेलना सुरु करिस।
थोर-थोर मां तीन बच्छर बीत गे। मिहनत के मारे दुलरवा हा ये तीन बछर मां बने पैसा सकेल डारिस। ओहा मंदिर बनाय बर सुरु करिस। ओला अब अपन जियत रहे के भरोसा दिन-दिन कम होत दिखय। ओखर इच्छा रिहिस के मंदिर हा झट के पूरा हो जातिस। दुलरवा हा रात-दिन बनिहार मन मेंर बुता कराय लागिस।
दुलरवा हा आ गांव के मनखे मन बर अचंभा बने रिहिस हे। ओमन सबो झिन भौजी के मंदिर के बनावब मां मदत करत रिहिन।
दू महिना के अब्बड़ मिहनत करे के बाद ओखर मंदिर बन के तियार होइस। दुलरवा आज बड़ खुस रिहिस। ओहा सब गांव भर के मनखे मन ला नेवता दिस। सब्बो झिन आइन। सब्बो दुलरवा के खुसी मां संग दिन। कोनो मेर नाचा, कोनों मेंर गाना। आज गांव मं खुसीच-खुसीच दिखत रिहिस।
संझा कन कलस चढ़ाय के मुहुर्त रिहिस। दुलरवा ह सब झन ला ब लाइस। बेरा मां सब झिन आगे। ओतके बेर जोर से आंधी आय लागिस, मनखे मन एती ले ओती लुकाय लगिन।
कलस चढ़ाना जरूरी रिहिस, फेर अपन जीव ला कोन चोखिम मां डारय। दुलरवा ला फिकर होगे, का होही ? कलस ला दुलरवा अपनी पीठ मां बांध के डोरी के आसरा मां उप्पर चढ़े लागिस। मनखे मन दुलरवा ला अड़बड़ समझाइन फेर दुलरवा हा नई मानिस, ओहर तढ़तेच गईस। गांव वाला देखत रिहिन एक ठन हाड़ा के सांचा हर ऊपर कोती सरकत रिहिस। मनखे मन भगवान ला मनावत रिहिन के आंधी हा रुक जाय। फेर इहां त आज नर अऊ नरायन मां सरियत लगे रिहिस। दुलरवा उप्पर चढ़गे। ओहा कलसा ला मंदिर मां मढ़इस। मनखे मन जै जैकार करिन, दुलरवा मन मां फूलिस अतेक के नई समाइस। अरे… अरे… काहतेच दुलरवा हा भुंइया मं गिर परिस। आखिरी मां नरायने के जीत होगे। नर हा अपन मुंड़ ला गड़िया दिस।
जौन मेर थोकन बेर के पहिली खुसी मनावत रिहिन, उहें दुख के समुंदर लहराय लागिस। सब झिन कहे लागिन – भगवान बड़े निर्दयी हे। ओहा सब घर भर ला बाराबाट कर दिस।
मनखे मन दुलरवा के किरिया कमरम करिन। एती सोनकुंवर के दुनया उजर गेय रहिस। तभोले ओला आसरा रिहिस के दुलरवा जियत होही। फेर दुलरवा घलोक वो करम-छंड़हीन ला तरसत छोड़ के चल देय रिहिस।
एक दिन रमई कका ला घलोक भौजी के मंदिर के बिसेय मां सोर मिलिस, के दुलरवा ह जियत हे। ओहा मंदिर बनवावत हे। ओहा घर मां किहिस मेंहर काल दुलरवा के गांव जात हंव। दुलरवा उहें हे।
येला सोनकुंवर घलोक सुनिस। अब ओला बोध नइ रिहिस। ओहा रातो-रात अपन जोड़ी मेर भेंटे बर चल परिस।
बिहिनिया होत ओहा गांव पहुंच गे। दुलरवा के मौउत कइसे, काबर होइस, येला सब गांव के मनखे मन सोनकुंवर ला बताइन। सोनकुंवर हा बही मन असन मंदिर कोती दौड़िस। भौजी… भौजी… भौ…जी।
सोनकुंवर गिर परिस। ओखर नांक मां अड़बड़ जोर से परिस। ओखर जीयेच उड़ागे।
गोठ के बीते ले मनखे मन ला रोजेच दिया बरत दिखथे। मंदिर रोजेच सफ्फा रहिथे। ये तीन झन बुताय जीव फेर मिलके एके होगे हे। सच्चा पियार के तीन ठन मोती आज घलोक चमकत हवंय।
अऊ फेर…।
फेर का ? सब गोठ ला त मेंहर बता डारेंव।

उपन्‍यासकार परिचय

नाम : शिवशंकर शुक्ल
पिता : स्व. श्री गौरीशंकर शुक्ल
माता : स्व. सुभद्रा देवी शुक्ल
जन्म : 8 दिसम्बर, 1932
शिक्षा : इंटरमीडियेट
पहली रचना : 8 वर्ष की उम्र में इलाहाबाद से प्रकाशित बाल पत्रिका ‘विनोद’ में प्रकाशित
बाल रचनाएं : साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नंदन, रानी बिटिया, शेर बच्चा, शिव साहित्य एवं अनेक बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित।
प्रथम उपन्यास : 1958 ‘भाभी का मंदिर’ हिन्दी में।
द्वितीय उपन्यास : 1964 ‘दियना के अंजोर’ छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रथम उपन्यास।
तृतीय उपन्यास : 1965 ‘मोंगरा’ छत्तीसगढ़ी भाषा में।
प्रथम कहानी : संकलन 1965 ‘रधिया’ छत्तीसगढ़ी भाषा में।
बाल साहित्य :
‘डोकरी के कहिनी’ छत्तीसगढ़ी भाषा में। (पाँच भाग)
‘हाथी उड़ा आकाश’ हिन्दी में।
‘राजकुमारी नैना’ हिन्दी में।
‘अकल हे फेर पइसा नइये’ हिन्दी में।
‘दमांद बाबू दुलरू’ छत्तीसगढ़ी में
संपादन : सन 1955 से 1056 एक वर्ष तक छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका का प्रकाशन।
कहानियों का प्रकाशन :
छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका लोकाक्षर, बिलासपुर, संकल्प रथ भोपाल, दैनिक महाकोशल, नवभारत, युगधर्म, दैनिक भास्कर, दैनिक नई दुनिया, देशबन्धु एवं हरिभूमि।

साभार: http://diynakeanjor.blogspot.com

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